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भरत चरित
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१२. शुक्ल पितृपक्ष की ओर से उत्पन्न होने के कारण वह अत्यंत मेधावी, बुद्धिमान एवं स्वामी का कार्य करने में सावधान है। वह दुर्बुद्धि नहीं अपितु भद्र स्वभाव वाला है।
१३. वह स्वामी की दृष्टि के अनुरूप कार्य करने वाला अत्यंत विनीत है। उसकी रोमराजि अत्यंत पतली, सुकुमार और स्निग्ध है। उसकी छवि, कांति भी मनोरम है।।
१४. वह देवता के मन एवं पवन की गति को भी अपनी गति भी पराजित कर देता है। ऋषीश्वर की तरह क्षमावान है।
१५. वह सुशिष्य की भांति साक्षात् सुविनीत है। भरत नरेंद्र को इस प्रकार का कमलामेल अश्व पुण्य के प्रमाण से प्राप्त हुआ है।
१६,१७. वह पानी, अग्नि, रेणु, कादा-कीचड़, धूल भरी राहों, नदी तट, पर्वत शिखर, गिरिकन्दराओं आदि अनेक भारी-भारी विषम स्थानां को लांघने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं करता। चलाने वाला सवार उसे थोड़ा-सा इशारा करता है तो तत्काल वह उसे पार पहुंचा देता है।
१८. वह यथा अवसर ही हिनहिनाता है। उसने आलस्य, नींद तथा शीत-आतप आदि परीषहों को जीत लिया है। वह स्थान की मर्यादा को देखकर ही मल-मूत्र करता
है
१९. जातिवान् मातृपक्ष की ओर से उत्पन्न होने के कारण उसकी घ्राणेंद्रिय नासापुट अत्यंत सुगंधित है। उसके श्वासोच्छ्वास से कमल के फूल जैसी सुवास आती है।
२०. वह युद्धभूमि में सुदक्ष सुभट पर भी दंड की तरह अचानक प्रहार करता है। खेद-खिन्न होने पर भी अश्रुपात नहीं करता। उसका रक्ततालुआ निर्दोष है।