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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ४. चिरंजीवी घणा काल जीवजों, प्रथम नरेसर छों तांम। रा।
सहंसागमे महिला तणा, प्राण वल्लभ छों सांम। रा०।।
५. थे इसर चवदें रतनां तणा, थारों जस फेंल्यों सगलें अतंत। रा०।
तीन दिस धरती समुद लगें, उत्तर दिश पर्वत हेमवंत। रा०।।
६. थे सर्व भरत खेतर तणा, अधिपती मोटा राजांन। रा।
म्हें छां तुमहारा देसना, सेवग छां वसवांन। रा०।।
७.
थे छों म्हारा अधिपती, म्हें छा तुम्हारी रेत। रा। म्हे किंकर भूत छां आपरा, थे म्हारा सिर धणी म्हेंत। रा०॥
८. इचर्य कारणी छे तुम्ह तणी, रिध जोत क्रांत अदभूत। रा०।
जस कीरत इचर्य कारणी, इचर्य कारी तुमारा सूत। रा०॥
९. बल वीर्य तुम्हारों देखनें, म्हें हुआ घणा भयभ्रांत। रा०।
पुरषाकार प्राराक्रम तुम तणों, तुरत करें दुसमण री घात। रा०।।
१०. जोत क्रांति तुम्हारी देवतां जिसी, देवनी परें , तुम भाग। रा०।
लाधी पांमी रिध सनमुख हुइ, तिणरों कहितां न आवें थाग। रा०।।
११. पिण म्हे अपराधी छां आपरा, म्हें कीयों घणों अपराध। रा।
म्हें सांहमा मंडीया आप थी, तिणसूं हुइ , म्हारे असमाध। रा०॥
१२. आप पधारया इण देस में, जो म्हें पगां लागता सताब। रा।
जो म्हे सांहमां न मंडता आपथी, तो म्हें क्यांने पडावता आब। रा॥
१३. म्हें ऊंधी करेय विचारणा, म्हें कीयों थांसूं संग्राम। रा०।
तो म्हें वड वडा जोध मरावीयों, म्हें यूंही पराइ मांम। रा०॥
१४. म्हें आपनें कांनां सुणीया नही, गुण पिण नही सुणीया लिगार। रा०।
तिणसूं अविनों कीयों म्हें आपरों, म्हे मूल न कीयों विचार। रा०॥