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भरत चरित
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४. आप हजारों महिलाओं के प्राणवल्लभ हैं, प्रथम नरेश्वर हैं। आप दीर्घ काल तक चिरंजीवी रहें ।
५. आप चौदह रत्नों के स्वामी हैं । आपका यश तीन दिशाओं में धरती से समुद्रपर्यंत एवं उत्तर में हेमवंत पर्वत तक सब जगह फैला हुआ 1
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६,७. आप भरतक्षेत्र के महान् अधिपति हैं । हम आपके वशवर्ती नागरिक सेवक हैं। आप हमारे अधिपति हैं, हम आपकी प्रजा हैं । हम आपके किंकर हैं। आप हमारे शिरोधार्य मुखिया हैं।
८,९. आपकी ऋद्धि, ज्योति, यश, कीर्ति अद्भुत आश्चर्यकारक है । आपका बलवीर्य, पौरुष, पराक्रम शत्रुओं का विनाशकारी है। हम उसे देखकर भयभ्रांत हुए।
१०. आपकी ज्योति, कांति, भाग्य, देवोपम है । आपने जितनी ऋद्धि प्राप्त की वह अकथनीय है ।
११. पर हम आपके अपराधी हैं । हमने बहुत अपराध किया । हमने आपका सामना किया। उसी से हम अशांत हुए हैं ।
१२. आप इस देश में पधारे। अच्छा होता हम तत्काल आपके पैरों में गिरते । यदि हम आपका सामना नहीं करते तो हमारी इज्जत क्यों जाती ? ।
१३. हमने उलटा सोचकर आपसे युद्ध किया । हमारे महारथी मारे गए। हम व्यर्थ ही बेइज्जत हुए।
१४. हमने कभी आपको तथा आपके गुणों को अपने कानों से नहीं सुना। उससे हमने आपका अविनय किया । किंचित् भी विचार नहीं किया ।