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दोहा १-३. मेघमाली देवता के चले जाने पर वे उठकर खड़े हुए। स्नान कर वलिकर्म, मांगलिक किया। भीने वस्त्र पहनकर उनके किनारों को नीचे रखकर अधोमुख होकर धरती पर दृष्टि गड़ाकर जैसा देवताओं ने कहा था बहुमूल्य रत्नों का उपहार लेकर जहां भरत नरेंद्र थे वहां आए।
४,५. अंजली जोड़कर उसे मस्तक पर टिका कर जय-विजय शब्दों से वर्धापित-प्रशंसित करते हुए, अमूल्य रत्नों का उपहार लेकर जहां भरतजी बैठे थे उनके सामने रखकर, उनके पैरों में गिरकर किस तरह गुणगान करते हैं, इसे चित्त लगाकर सुनें।
ढाळ : ४१
आप इस देश में भले पधारे। १. छह खंड वाली रत्नगर्भा पृथ्वी के आप गुणवान् गणधर हैं। वैरियों को जीतने से जयवंत हैं। लज्जा, लक्ष्मी, धैर्य से आप संत हैं।
२. आप कीर्तिधर नरेंद्र हैं, सहस्रों शुभ लक्षणों सहित हैं। आप चिरकाल तक सुचारु रूप से सुख-समाधिपूर्वक राज्य करें ।।
३. आप हाथी, घोड़े, मनुष्य आदि नौ निधानों के स्वामी हैं। भरतक्षेत्र के बत्तीस हजार देशों के प्रथमपति हैं।