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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० २७. तिण अवसर सेन्या नें भरत राजांन ए, त्यांरे नीचें , चर्म रत्न निधान ए।
उपर छे छतर रत्न त्यारे तास ए, मणीरत्न तणों होय रह्यों प्रकास ए।
२८. सुखे सुखे इण रीतें काढ्या दिन सात ए,
भूख पिण किणही न काढी अंस मात ए। दीनपणों में भय पांमीया नांहिए,
दुख पिण किण ही न पांम्यों मन मांहि ए।।
२९. एहवो पुन तणो छे प्रताप ए, त्यांने पिण जाणें छे भरतजी विलाप ए।
ज्यांने पिण छोड देसी ततकाल ए, मोख जासी सुध संजम पाल ए॥