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भरत चरित
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२२. ऐसे श्रीकार गाथापतिरत्न के एक हजार देवता अधिष्ठायक हैं । वे धान्य आदि निपजाने में सहयोग करते हैं । मनोगत चिंतित कार्य करते हैं।
२३. देवता नौकर की तरह उसके सामने प्रस्तुत रहते हैं। उसने पिछले भव में प्रबल पुण्यों का संचय किया था । उसके गुण लोक विख्यात हैं । देवता भी उसकी बात का उल्लंघन नहीं करते ।
२४. वह प्रातः धान्य आदि सर्व रसाल को बोता है और उसी दिन फसल को काट लेता है। सूर्य के ऊगने और अस्त होने के बीच धान्य निष्पन्न हो जाता है ऐसा गाथापति रत्न हैं।
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२५. वह हजारों चांदी के कलशों को भी तत्काल तैयार कर देता है । उन्हें धान्य आदि से भर-भरकर भरतजी के सामने प्रस्तुत कर देता है ।
२६. वह जो रसाल पैदा करता है उसे तत्काल यथासमय सारी सेना तक पहुंचा देता है। किसी के भी कोई कमी नहीं रहती । सारी सेना तृप्त हो जाती है।