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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० १३. जब मेघमाली तिण ठांम ए, त्यांने उत्तर कहें , आम ए।
ओंतों भरत नामें राजांन ए, चक्रवत छे मोटों पुनवांन ए।
१४. तिणरें रिध घणी अथाग ए, मोटी जोत क्रान्ति महाभाग ए।
तिणरा सुख में सकत अतंत ए, सूरवीर घणो बलवंत ए।।
१५. निश्चें नही इण लोक रे माहि ए, इणनें पाछो वाल्यों जाय ए।
देवता दाणव किंनर अनेक ए, वळे किंपुरष देव वशेख ए॥
१६. महोरग में गंधर्व जाण ए, इत्यादिक वंतर जात पिछांण ए।
इत्यादिक देव अनेक ए, यांमें समर्थ नही कोइ एक ए॥
१७. साहमों मंडें भरत सूं जाय ए, जुझ कर देवें भगाय ए।
आघो आवा न दें सोय ए, इसरों नहीं दीसें कोय ए।।
१८. वळे ससत्र अगन रें जोग ए, अथवा मंतर में प्रजोग ए।
इत्यादिक उपद्रव्य माहि ए, भरत ने करवा समर्थ नांहि ए।।
१९. पिण म्हें थारी पीत रे काज ए, उवशर्ग करसां भरत ने आज ए।
म्हारे स्नेह थांसूं छे ताम ए, तिणसूं करतूं ए काम ए।।
२०. इम करे गया त्यासू वात ए, जाय कीधी वेकें समुदघात ए।
भरत राजा तणों अभीरांम ए, आया विजय कटक तिण ठाम ए।।
२१. विजय कटक उपर कीयो गाज ए, तिणरो घोर शबद ओगाज ए।
बिजलीयां खिवें ततकाल ए, झबाझब करे विकराल ए।।
२२. सिघ्र मेह कीयों ततकाल ए, ते पाणी पडे दगचाल ए।
धारा मूसल प्रमाणे जांण ए, तिण पांणी रो नही प्रमाण ए॥
२३. उघ मेह समूह वरसात ए, वूठो सात दिवस में रात ए।
जब भरत राजा तिण वार ए, पाणी वूठो जाण्यों एक धार ए।