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भरत चरित
२३१ १३. तब मेघमालो ने उत्तर दिया। यह तो भरत नामक पुण्यशाली महान् चक्रवर्ती राजा है।।
१४. इस महाभाग की ऋद्धि, ज्योति, कांति, सुख, शक्ति अथाह है। यह अत्यंत शूरवीर एवं बलवान् है।
१५-१७. निश्चय ही इस लोक में इसको पीछे नहीं धकेला जा सकता। देव, दानव, किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गंधर्व, व्यंतर आदि अनेक देव हैं। इनमें से एक भी ऐसा नहीं है जो भरत का सामना कर युद्ध करके उसे भगा दे, आगे न आने दे।
१८. आग्नेय शस्त्र, मंत्र-प्रयोग द्वारा भरत पर उपद्रव करना भी संभव नहीं है।
१९. फिर भी तुम्हारे प्रेम के कारण हम आज भरत पर उपसर्ग करेंगे। हमारा तुमसे स्नेह है, इसलिए यह कार्य करेंगे।
२०. उनसे यह बात करके वे जहां भरत राजा का अभिराम विजय कटक था वहां आए और वैक्रिय समुद्रघात की।
२१. विजय कटक पर गाज की। उस शब्द की भयंकर ओगाज हुई। तत्काल झबाझबा करती हुई विकराल विद्युत चमकने लगी।
२२. तत्काल वर्षा होने लगी। घनघोर पानी गिरने लगा। धारा का प्रवाह मूसल के समान था। पानी की कोई थाह नहीं रही।
२३,२४. सात दिन-रात तक बादलों के समूह बरसते रहे। जब भरत राजा ने इस एकधार पानी की बरसात को देखा तो श्रीवत्स के आकार वाला चर्मरत्न अपने हाथ में