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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ३०. दिवस सरीखो करतो थकों, जाओं तमस गुफा रे माहि।
घणे मध्यभाग गयें थके, दोय नदी वहें छे ताहि।।
३१. ते उमगजला में निमगजला, ते उडी वहें छे ताम।
त्यांरो विस्तार छे अति घणों, त्यांरो गुण प्रमाणे छे नाम ।।
३२. गुफा लांबी जोजन पचास नी, परवत परमाणे जाण।
ते पेंहली जोजन बारें तणी, उंची आठ जोजन प्रमाण।।
३३. इकवीस जोजन गुफा में गयां, नदी उमगजला , ताम।
ते तीन जोजन चोडी वहें, तिणरो गुण प्रमाणे नाम।।
३४. तिहां थी दोय जोजन आगा गया, नदी निमगजला छे ताम।
ते पिण तीन जोजन चोडी वहें, तिणरो गुण प्रमाणे नाम।।
३५. हाड कलेवरादिक तेहनें, उमगजला उचा
बारें नांखे दे तेहनें, निमगजला नीचा
आंणे सताब। दे धाब।
३६. एहवी गुफा नदी में उलंघनें, जासी वेताढ पर्वत पार।
बल प्राकम पुन रा जोग सूं, छ खंड रो सिरदार।।
३७. इसरा किरतब करें जांणतो जी, भरत
मोक्षगांमी , इणभवें, तिणरे घट जें
नरिंद राजांन। सुध गिनांन।।
३८. त्यांने ग्यांन तूं माठा जाणनें, छोड़ देसी ततकाल।
सिवपुर जासी कर्म काटनें जी, चारित चोखों पाल।।