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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० १९. बारें जोजन त्यां लगें, तिणरा लेस्या प्रभाव उद्योत।
ते लेस्या , वृध पामती, पिण घटें नही तिणरी जोत।।
२०. अंधकार तणा समूह हुवें, तिणरों में विनासणहार।
एहवी प्रभा क्रांति , तेहनी, तीनोइ काल मझार।।
२१. कटक पडाव करें तिहां जी, करें अतंत उद्योत।
दिन समांन तिणरों प्रकास छे, राते लागें झिगामिग जोत।।
२२. जेहना तेज प्रभाव करी जी, भरतराय नरेस।
सगली सेन्या सहीत सूं जी, तमस गुफा में करें प्रवेस।।
२३. पेंला अर्ध भरत ने जीपवा, कागणी रत्न ने लीधो हाथ।
तिणरा अधिष्टायक सहस देवता छे, ते पिण लार लगा तिण साथ।।
२४. इसडों रत्न , जेहनें, तिणरा जांणजो पुन अथाग।
तिणरों अधिपती भरत नरिंद छ, तिणरों तो मोंटों छे भाग।।
२५. तमस गुफा में बेहूं पाखती, पूर्व में पिछम दिस भीत।
एक जोजन जोजन रें आंतरें, मांडला करें रूडी रीत।
२६. लांबा ने पेंहला मांडला, ते पांच सों धनुष रों प्रमाण।
ते उद्योत प्रकास करें घणो जी, एक जोजन लगें जांण।।
२७. चक्र पेंडा रें संठाण छे, वळे चंद्रमा रों संठांण।
एहवा काकणी रत्न रा मांडला, त्यांरो प्रकास चंदर समांण।।
२८. एक एक जोजन रें आंतरे, मांडला करतो करतों जाय।
डावी में जीमणी भीतरें जी, तमस गुफा रे माहि।।
२९. मांडला आलेख आलेखतों, ते मांडला सर्व गुणचास।
ते मांडला ततकाल आलोकतां, सूर्य शरीखो प्रकास।।