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भरत चरित
२०७ ८. इस तरह मणिरत्न में अनेक गुण होते हैं । भरतजी को पुण्य के योग से वह प्राप्त हुआ है।
९. उस मणिरत्न को भरतजी ने हाथ में लिया और हाथी के कुंभस्थल के दांए पार्श्व पर स्थापित कर दिया।
१०. हस्ती पर बैठे हुए भरतजी पूर्ण चंद्र के समान सुशोभित होते हैं । ऋद्धि से परिवृत्त होते हुए वे देवपति शक्रंद्र जैसे लगते हैं।
११. चक्ररत्न के पीछे-पीछे समुद्र की तरह गुंजारव सिंहनाद करते हुए हजारों राजे चल रहे हैं।
१२. वे तामस गुफा के द्वार पर आए। गुफा में घोर अंधकार है। तब भरतजी ने काकिणीरत्न हाथ में लिया।
१३. काकिणीरत्न के चारों दिशाओं में चार तथा ऊपर और नीचे इस प्रकार छह आयाम होते है।
१४. अहरण के संस्थान वाले काकिणीरत्न के आठ किनारे कोण हैं। उसका भार आठ सोनैया प्रमाण है।
१५. उसकी छहों हास एक जैसी होती हैं। एक-एक समचतुरस्र संस्थान की तरह चार अंगुल प्रमाण होती है।
१६. स्थावर या जंगम किसी भी प्राणी के विष का वह निवारक है। वह अनुपम, अतुल्य और श्रीकार रत्न है।
१७. लोक में जितने भी मान, उन्मान तथा प्रमाण हैं वे सब काकिणीरत्न से प्रवर्तित होते हैं।
१८. सूर्य, चंद्र या अग्नि से जो अंधकार नहीं मिटता वह काकिणीरत्न से मिट जाता है।