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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० १३. कमाड तीन वार ताड्यां थकां रे, मोटे मोटे शबद तिण वार।
कोच पक्षी ज्यूं शब्द करता थका, उघड़ीया गुफाना कवाड रे।।
१४. कमाड उघडीया जाणने रे, सेनापती तिण वार।
ते आयों भरत राजा कनें, कहें उघाडीया छे कवाड रे।।
१५. ए वचन सुणे ने भरतजी रे, हरषत हूआ मन माहि।
सेनापती ने भरतजी रे, घणों सनमान्यों ताहि रे।।
१६. हिवे कोडंबी पुरुष बोलाय ने रे, कहे भरतजी आंम।
पटहस्ती रत्न नें सज करों, चउरंगणी सेन्या सजों तांम रे।।
१७. चउरंगणी सेना सज करी रे, पाछी आगना सूंपी
जब पटहस्ती उपरे रे, बेठा भरत माहाराय
आय। रे।।
१८. त्यांने जाणे भरतजी विटंबणा रे, जेहवो ढूहलडीयां रो खेल।
त्यांने छोडे संजम सुध पालसी रे, मुगत जासी करमाने पेल रे।।