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भरत चरित्र
दोहा १. जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति में भरत चक्रवर्ती की वार्ता है। मैं उसी के अनुसार कह रहा हूं। उसे चित्त लगा कर सुनें।
२. तीसरे आरे की बात है। उस काल और उस समय में विनीता नाम की रमणीय नगरी थी। वह लोक में प्रसिद्ध-विख्यात है।
३. वह बारह योजन लंबी और नौ योजन चौड़ी है। अर्ध भरत क्षेत्र के मध्य भाग में बसी उस नगरी का स्वयं जिनेश्वर ने वर्णन किया है।
४. शक्रेन्द्र के लोकपाल धनपति नामक देवता ने अपने बुद्धि-कौशल से विशाल विनीता नगरी की रचना की।।
५. विनीता के चारों ओर अनुपम स्वर्णमय परकोटा शोभित हो रहा है। अनेक पंचवर्णी मणि-रत्नों के कंगूरों से वह अधिक सुरूप दिखाई दे रही है।
६. उसका किला अभिराम कंगूरों से परिमंडित है। वह अपनी जगमगाहट एवं दिव्यता से दीप्तिमान लग रहा है।
७. विनीता नगरी अलकापुरी के समान है। मानो देवलोक प्रत्यक्ष हो गया हो। वहां के लोग प्रमोद, हर्ष और क्रीड़ा करते हुए सुखपूर्वक रहते हैं।
८. वे ऋद्धि, भवन आदि से संयुक्त हैं, निर्भय हैं। धन और धान्य आदि से समृद्ध हैं।।