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भरत चरित
१. भरत
तिण
चक्रवत अनुसारे
नी हूं
दुहा वारता, जंबूदीप पन्नंती माहि। कहूं, ते सुणजों चित ल्याय।।
२. तिण कालें ने तिण समें, तीजा आरा नी वात।
वनीता नगर रलीयांमणी, ते प्रसिध लोक विख्यात।।
३. ते लांबी जोजन बारें तणी, पहली नव जोजन जांण।
अर्धभरत रे मझ भाग छ, तिणरा जिणवर कीया छे वखांण।।
४. धनपती नामें देवता, ते सक्रइंद्र नो लोकपाल।
तिण नीपजाइ आपरी बुधकरी, वनीता नगरी विसाल।।
५. तिण दोलों कोट सोवन तणों, ते सोभ रह्यों में अनूप।
अनेक मणी रत्नां रा कांगरा, पांचवर्णा छे इधिक सरूप।।
६. गढ ऊपर त्यां कांगरा करी, परिमंडत छे अभिराम।
ते दीपतों दहदीपमान छे, झिगझिगाट रही छे ताम।।
७. ते नगरी अलकापुर सारिखी, जाणे प्रतख देवलोक।
प्रमोद हरख कीला करे, सूखी घणा छे लोक।।
८. रिध भवनादिकें
समिरिध लोक
संयुक्त छ, ते निरभय छे भय रहीत। वसे सहु, धन धानादिक सहीत।।