________________
१. आठ दिवस . जब सेन्यपती
दुहा . महोछव तणा, पूरा ने बोलायनें, कहें
हुआ छे भरतजी
ताम। आंम।।
२.
जा तूं वेग उतावलो, सिंधू नदी में पेलें पार। लवण समुद उला सगला भणी, कीजें म्हारी आगना मझार।।
३. रत्नादिक भारी भारी भेटणा, लीजें तूं
सेवग म्हारा ठहरायनें, पाछी आगना
आंण मनाय। सूंपो आय।
४. सुसेण
थोडो
सेनापति सों परगट
तेहनों, वरणव कह्यों जिणराय। करूं, ते सुणजों चित्त ल्याय।
ढाळ : २९ (लय : पूजजी पधारो हो नगरी सेवीया)
सेनापती रत्न छे भरत नरिंदनों।। १. सेन्यापती रतन छे भरत नरिंद नों, सुसेण , तिणरों नाम रे। सोभागी।
जस फेल्यो , तिणरों लोक में, भरतखेतर में ठाम ठाम रे। सोभागी।
२. ते प्रसिध चावों में भरतखेतर मझे, वळे प्राक्रम तिणरो अतंत रे।
वीर्य ओछाह मन रों छे अति घणों, मोटी आत्मा तिणरी महंत रे।।
३. तेज सरीर तणी क्रांत अति घणी, धीर्यादिक लखण सहीत रे।
जस कीरत फैली छे तिणरी चिहूं दिसां, ओर दोषण करनें रहीत रे।।