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भरत चरित
१६९ १५. भरतजी के पुण्य-प्रताप को देखो। देवता भी उनके सामने नमन करते हैं। पैरों में उपहार रखकर भरतजी को अपना स्वामी मानकर उनका सेवक बन गए।
१६. कृतमाली के चले जाने पर भरतजी स्नानघर में आए। स्नान कर बाहर निकले और भोजन-मंडप में गए।
१७-१९. भोजन कर बाहर निकल कर उपस्थानशाला में आए। वहां सिंहासन पर बैठकर श्रेणि-प्रश्रेणि को आमंत्रित कर बोले- कृतमाली देवता ने पदनामी होकर मेरी आज्ञा को स्वीकार कर लिया है। वह मेरा सेवक बन गया है। अत: आठ दिन तक धूमधाम से महोत्सव कर मेरी आज्ञा को मुझे प्रत्यर्पित करो। श्रेणि-प्रश्रेणि के लोग यह सुन हर्षित हुए और धूमधाम से महोत्सव किया।
२०. इस प्रकार के महोत्सव अच्छे तो लगते हैं पर भरतजी इन्हें जहर के समान जानते हैं । वे इन्हें त्यागकर इसी भव में मुक्ति जाएंगे।