________________
१६८
भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० १५. देखों पुन्याइ राजा भरत नी, देवता पिण नमीया आय लाल रे।
पगां भेटणों मेल सेवग हूआ, सिर धणी भरत में ठहराय लाल रे।।
१६. किरतमाली देवता गयां पठे, आया मंजण घर माहि लाल रे।
सिनांन करे बारें नीकल्या, गया भोजन मंडप माहि लाल रे।।
१७. भोजन कर बारें नीकल्या, गया उवठाणसाला माहि लाल रे।
तिहां बेंठा सिंघासण उपरें, कहें श्रेणी प्रश्रेणी में बोलाय लाल रे।।
१८. किरतमाली देवता माहरें, पगां लागे मांनी माहरी आंण लाल रे।
ते सेवग ठहस्यों छै म्हारो, ते महोछव करों मोटें मंडाण लाल रे॥
१९. आठ दिवस महोछव करी, म्हारी आग्या पाछी तूंपो आंण लाल रे।
श्रेणी प्रश्रेणी सुण हरखत हूवा, महोछव कीधा मोटें मंडांण लाल रे।।
२०. एहवा महोछव लागें रलीयांमणा, पिण जाणें , जहर समांण लाल रे।
त्यांने त्यागनें भरतजी, इणहीज भव जासी निरवांण लाल रे।।