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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१०
११. जब
भरत
नरिंद
नरनाथ, धनुष बांण लीयों हाथ। आ०।
बांण नांख्यों तिणरा भवन में।।
१२. प्रभास देव बांण में देख, जाग्यों तिणने धेष विशेख। आ०।
मागध ज्यूंसर्व जाणजों।।
१३. पछे
कीयों मन में विचार, उपनों इण भरत मझार।
अधिपती उठ्यो भरत खेत्र नो।।
१४. म्हारों
तों
जीत
आचार, भेटणों लेजावणहार। आ०।
तो भेटणों लेने जाऊ तिहां।।
१५. रत्नां री माला लीधी हाथ, वळे मुगट लीयों तिण साथ। आ०।
मोती ने सोवन तणी जालीयां।।
१६. हाथां ने कडा लीया जांण, बाह्यां ने बेंरखा वखांण। आ०।
अनेक आभरण रलीयांमणां।।
१७. प्रभास तीर्थ उदक विशेख, करवा राज अभीषेक। आ।
नांमकिरत बांण ते लीयो।
१८. ते सगला ल्याययों आंण हुलास, आयों भरत नरापति ने पास। आ०।
आकासे आय उभों रह्यों।।
१९. हाथ जोडी सीस नाम, नमसकार कीयों परिणाम। आ०।
भेटणों मुख आगल धस्यों।
२०. हूं पछिम दिस नो रुखवाल, हूं आप तणों कोटवाल। आ।
हूंकिंकर सेवग छू आपरों।।
२१. इत्यादिक
करे गुण
ग्राम, वारूंवार सीस नाम। आ०।
बोली अनेक विडदावली॥