________________
भरत चरित
ढाळ : २५
१. इस प्रकार भरत नरेंद्र वरदाम तीर्थ साध कर जीत - फतेह कर वापिस आए।
२. विजय कटक से आकर मंजनशाला में स्नान कर बाहर निकले ।
१४७
३. फिर भोजन - मंडप में जाकर भोजन कर उपस्थानशाला में आए।
४. श्रेणि- प्रश्रेणि को बुलाकर कहा - वरदाम देव हमारे सामने नतमस्तक हो गया है । अत: नगर में आठ दिन का महोत्सव करो।
1
५. श्रेणि- प्रश्रेणि ने यह बात सुनकर उसे मान्य कर पूर्वोक्त रूप से ही महोत्सव किया ।
६. श्रेयस्कर महोत्सव पूरा होने पर चक्ररत्न पुनः आयुधशाला से बाहर निकला ।
७. वह आकाश में गया। पूरा आकाश वाद्ययंत्रों के घोष शब्दों से आपूरित हो
गया।
८. जब वह वायव्य कोण की दिशा में जाने लगा तो भरतजी ने जाना यह प्रभाष तीर्थ का मार्ग है।
९. भरत नरेंद्र भी पूर्वोक्त विधि से सेना लेकर उसके पीछे चलने लगे।
१०. समुद्र तट पर सेना का पड़ाव किया और रथ की पींजणी भीगे उतनी दूर तक समुद्र का अवगाहन किया ।