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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१०
ढाळ : २५
(लय : अछे लाल) १. भरत नरिद तिण ठांम, साझ्यो तीर्थ वरदांम। आछेलाल।
जीत फतें कर पाछा वल्या।।
२. विजयकटक
में
आय, गया मंजण घर माहि। आ।
सिनांन करे बारें नीकल्या।।
३. पर्यो भोजनमंडप
जाय, भोजन कीयों छे ताहि। आ।
___पछे उवठाणसाला आया तिहां।।
४. श्रेणी प्रश्रेणी कहें छे बोलाय, आठ दिवस महोछव करों जाय। आ.।
वरदांम देव नमीयों तेहनों।
५. श्रेणी प्रश्रेणी सुण इम वांण, कर लीधी परमाण। आ।
महोछव कीया पाछली परें।।
महोछव पूरा कीया श्रीकार, जब चक्ररत्न तिणवार। आ०।
आउधसाला थी बारें नीकल्यों।।
७. गयों आकास मझार, तिहां वाजंत्र वाजें श्रीकार। आ०।
घोष शबद आकास पूरतों॥
८. चाल्यों वायवकूण रे मांहि, जब जांण्यों भरत माहाराय। आ०।
परभास तीर्थ तिण मारगें।।
९. जब भरत नरिंद तिणवार, सेन्य ले चाल्यों तिण लार। आ।
___ पाछे कह्यों तिण रीत तूं।
१०. कटक
उतरयों तिण
ठांम, समुद्र अवगाह्यों ताम। आ०।
पीजणी भीजें तिहां लग गया।।