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भरत चरित
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१८. चार चामरों से वे सुशोभित हैं । उनके अंग स्वर्ण से विभूषित हैं । विविध प्रकार के आभूषणों से सुघड़ता से शृंगारित हैं ।
१९. ऐसे घोड़ों को रथ के साथ जोड़ा। रथ छत्र से सुशोभित है । उसमें ध्वजा, घंटा, पताका आदि भी अपने-अपने स्थान पर सुशोभित हैं ।
२०. उस श्रेष्ठ युद्धरथ के अंगों को परस्पर इस प्रकार जोड़ा गया कि उससे गंभीर वाद्ययंत्रों के स्वर जैसा गूंजायमान स्वर उठता है 1
२१. उसकी पींजणी (झालर ) श्रेष्ठ थी । उसके मोहक पहिए चारों ओर चक्राकार धारा से आवृत्त हैं ।
२२. धारा के किनारे कंचन से विभूषित हैं । चतुर कारीगरों ने वज्ररत्न से उसके नाभिकेंद्र को बांध रखा है।
२३. नरश्रेष्ठ भरतजी के उस श्रेष्ठ रथ को श्रेष्ठ सारथी कुशलता से चला रहा
है।
२४. उत्कृष्ट रत्नों से सुशोभित रथ के सोने की घूघरियां लगी हुई हैं । उसका प्रकाश विद्युत् के समान है। वह अपराजेय है ।
२५. उस पर सब ऋतुओं में खिलने वाले फूलों की माला एवं गुच्छे स्थानस्थान पर बांधे हुए हैं । उस पर ऊंची ध्वजा लगी हुई है। उसकी ध्वनि मेघ गर्जना जैसी है ।
२६. उस रथ पर बैठने वाला विश्व-विजेता, बाहुबली तथा शत्रुओं को कंपा देने वाला होता है । अतः उसका नाम ही विजय-लाभ रथ रखा गया ।
२७. भरतजी को ऐसा रथ मिला पर वे अपने ज्ञान से उसे धूल के समान जानते थे। वे विरक्त होकर उसे छोड़कर मुक्ति में जाएंगे।