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दुहा १. तिण रथ ने अश्व तणों, विस्तार कह्यों अल्पमात।
तिणरों अधिपती भरत नरिंद छे, तिणरी जस कीर्त लोक विख्यात।।
२. पोषा सहीत तिण रथ उपरें, बेंठा भरतजी आय।
दिखण सामों वरदांम तीर्थ तिहां, गया लवण समुदर में माहि।।
३. रथ नी पीजणी भीजें त्यां लगें, गया भरतजी ताम।
बांण न्हांख्यों मागध तीर्थनी परें, सगलों विस्तार कहिणों इण ठांम।।
४. मागध नी परें ल्यायों भेटणों, तिण माहे इतरों फेर जाण।
ते ल्यायों मुगट चूडामणी, वळे हीयाना भूषण बखांण।।
५. वळे भूषण ल्यायों गला तणा, कडीयां नें कणदोरों जांण।
वळे कडा आण्या हाथे पेंहरवा, बाह्यां ने बेंहरखा बखांण।।
६. इत्यादिक आभरण आण्या घणा, वरदांम तीर्थ पांणी ताहि।
नांमकिरत बांण आंणीयो, सारा मेल्या भरतजी रे पाय।।
७. हाथ जोडी में इम कहें, करे घणा गुण ग्रांम।
हूं सेवग छू आपरों, दिखण दिस नो देव वरदांम।।
८. मागध तीर्थ कुमार देव नी परें, सघली विध साचवी ताम।
विनय करी सीख मांगनें, देव गयो निज ठांम।।