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भरत चरित
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ढाळ : २०
अब भरतजी देवी देवताओं को अपने अधीन बनाते हैं। १. अब अत्यंत उल्लास से भरकर भरतजी ने अपने हाथ में धनुष लिया। उस धनुष का प्रकाश ऊगते हुए चंद्रमा तथा इंद्रधनुष जैसा था।
२. धनुष की किरणें बादलों की तेजस्वी विद्युत जैसी हैं। उस पर तपाए हुए सोने के बंध लगाए हुए हैं तथा अनेक आकर्षक चिह्न अंकित हैं।
३. केशरीसिंह तथा चमरी गाय के केशों जैसे लक्षण उस धनुष में अंकित हैं। उसकी जीवा अत्यंत सुंदर है।
४. मणिरत्न की घंट जालिकाओं से वह धनुष लपेटा हुआ है। आगम में उसे विस्तार से बताया गया है। भरतजी ने ऐसा धनुष हाथ में उठाया।
५. भरतजी ने अपने हाथ में जो बाण लिया उसके दोनों किनारे वज्रमय है। उसका मुख वज्रसार जैसा है। बाण सोने के तारों से बंधा हुआ है।
६. वह चंद्रकांत मणिरत्नों से सुशोभित एवं निर्मल है। उसमें विविध प्रकार के मणिरत्न चित्रित हैं।।
७. भरतजी ने उसमें अपना नाम भी चित्रित किया। फिर घुटना नीचे टिका कर बाण को हाथ में लेकर उसे खींच कर कानों तक ले आए।
८,९. अब भरतजी अपने मुंह से कहते हैं- मेरे राज्य की सीमा के बाहर नाग, असुर आदि बाण के कोई अधिष्ठायक देव हों तो मैं उन्हें प्रणाम-नमस्कार करता हूं तथा मेरे राज्य की सीमा के अंदर जो भी नाग, असुर, सुवर्णकुमार आदि बाण के अधिष्ठायक देवता हों वे इस समय मुझे सहयोग प्रदान करें।