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भिक्षुवाड्मय-खण्ड-१०
ढाळ : २० ( लय : भव जीवां तुम्ह जिण धर्म ओलखो)
___ हिवें भरतजी नमावें देवी देवता।। १. हिवें भरतजी धनुष हाथे लीयो, मन माहे रे आणी इधिक हुलास।
उगतों चंदरमा ने इंदर धनुष नो, तिण सरीखो रे धनुष तणों प्रकाश।।
२. जेहवी किरण नवी बिजली तणी, तेहवी किरणां रे तिण धनुष री जांण।
तिणरें तपाया सोवन तणा बंध छे, तिण माहे रे रूडा चेंहन पिछांण।।
३. केसरीसिंघ ना केस जेहवा, वळे चमरी रे गाय ना केस जांण।
एहवा लछण छे तिण धनुष में, तिणरी जीवा रे दिढ अतंत बखांण।।
४. मणी रत्न तणी घंट जालिका, तिण करनें रे धनष विट्यों रह्यों ताहि।
तिणरो विस्तार सुतर में कह्यों घणों, एहवो धनुष रे हाथे लीयों में राय।।
५. वळे बांण हाथे लीयों भरतजी, तिणरा छेहडा रे बेहूं वजर में जांण।
वजरसार सारीखों मुख जेहनों, कंचन में रे बांध्यों बांण वखांण।।
६. मणी चंद्रकांतादिक रत्न में, घणु निरमल रे बाण सोभे रह्यों ताहि।
अनेक प्रकारना मणी रत्न में, भांतां चित्री रे तिण बांण रे माहि।।
७. निज नाम चित्र्यों तिण बांण में, तिणनें लीधो रे भरतजी हाथ माहि।
गोडीवाल बेंसीने बांण तांणीयों, कांनां लग रे आंण्यों तांणीनें ताहि।।
८. हिवें मुख सु कहें छे भरतजी, नाग असुरादिक हो म्हारी सीम रे बार।
जे कोइ बांण अधिष्टायक देवता, तेहनें प्रणमु हो करे नमसकार।
९. वळे बांण ना अधिष्टायक देवता, नाग असुर हो वळे सोवन कुमार।
म्हारी सीमवासी सर्व देवता, साहज करजों हों मोंनें थे इण वार।