________________
भरत चरित
१०५
५. चौदह रत्नों के अधिष्ठायक सभी चौदह हजार देवता भरतजी की आज्ञा में रहते हैं। बिना आज्ञा के कुछ भी काम नहीं करते।
६. तेरह रत्न तो विनीता नगरी में ही आकर मिल गए। केवल स्त्रीरत्न वैताढ्य गिरि के पार अपने पिता के घर है।
७. जब तक स्त्रीरत्न अपने पिता के घर रहता है तब तक देवता उसके पास नहीं रहते। भरतजी को सौंप देने के बाद वे उसकी रक्षा करेंगे।
८. वैताढ्य गिरि के मूल में अश्वरत्न को उत्पन्न हुआ जानकर देवताओं ने उसे भरतजी के सामने उपस्थित किया।
९. इसी प्रकार जब वैताढ्य गिरि पर्वत के मूल में गजरत्न पैदा हुआ तो देवताओं ने उसे लाकर भरतजी को सौंप दिया।
१०. चर्मरत्न, मणिरत्न तथा काकिनीरत्न ये तीनों ही श्रेष्ठ रत्न हैं। वे श्रीधर पर्वत में नव-निधान में पैदा हुए।
११. देवता इन तीनों रत्नों को वहां से लेकर आए तथा अत्यधिक विनम्रतापूर्वक भरतजी को सौंप दिए।
१२. चक्ररत्न, छत्ररत्न, दंडरत्न तथा असिरत्न- ये चारों आयुधशाला में आकर उत्पन्न हुए।
१३. इस प्रकार स्त्रीरत्न के अतिरिक्त तेरह रत्न अपने आप वश में हो गए। कुल मिलाकर सोलह हजार देवता भरत के वश में होकर हमेशा सामने खड़े रहते हैं।
१४. हाथी, घोडा और रथ प्रत्येक चौरासी-चौरासी लाख प्रमाण हैं। छिन। करोड़ उनकी अपनी निजी पायक सेना है।
१५. भोग में तल्लीन रहते हुए आराम से उनका समय बीत रहा है। एकबार उनको एक साथ तीन बधाइयां प्राप्त हुईं।