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भरत चरित
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५. ब्राह्मी के अमूल्य हीरे के समान निन्यानव सहोदर थे । भरत ने चक्रवर्ती का पद प्राप्त किया ।
६. सुंदरी के केवल बाहुबल एक ही सहोदर था । उसने बहत्तर कलाएं सीखीं । उसके बाद सुनंदा के कोई संतान पैदा नहीं हुई ।
७. दोनों चतुर बहनों ने चौसठ कलाएं सीखीं । वे सभी गुणों से परिपूर्ण थीं । उनकी बुद्धि में कोई कमी नहीं थी ।
८. दोनों बहिनें बत्तीस लक्षणों से संपन्न थीं । ऋषभदेव ने ब्राह्मी को अट्ठारह लिपियां सिखाईं।
९. इनके मन में ब्रह्मचर्य का ही स्वाद बस रहा था। तन में भी कभी विषय को आमंत्रण नहीं दिया । इन्होंने ममता को छोड़कर समता को अपना लिया ।
१०. दोनों पुत्रियों ने अपने पिता को निवेदन किया कि हमें तो ब्रह्मचर्य ही अच्छा लगता है, अत: हमारा किसी के साथ रिश्ता न करें ।
११. हम किसी की पत्नी कहलाना पसंद नहीं करतीं । ससुराल का नाम लेते ही हमें लज्जा आती है। हमें प्रियतम की कोई चाह नहीं है ।
१२ . पिता श्री बोले- पुत्रियों ! सुनो, तुमने तो मोहजाल - ममता को समेट लिया है। तुम्हारी क्रिया में भी कोई कमी नहीं है ।
१३. पर तुम्हारा रूप देखकर भरत की कामना जाग गई । भरत तुम्हें दीक्षा नहीं लेने देता। यह सुन ब्राह्मी अपने शील की रक्षा के लिए डट गई ।
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१४. वह दो-दो दिन के अंतराल से केवल लूखा-सूखा अन्न पानी ग्रहण करने लगी। इससे उसकी फूल जैसी काया मुरझा गई ।
१५. भरत की उत्कट कामेच्छा को जानकर ब्राह्मी ने तपस्या स्वीकार ली । उसकी गणना साठ हजार वर्ष तक पहुंच गई।