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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० १६. भरत छोड दीनी मन री ममता, सती रो सरीर देखीने आई सुमता।
पछे दीपती दिख्या दराइ।।
१७. बेहुं बाया रे वेंराग घणों, बेहुं कुमारी किन्या में लीधों साधपणों।
बेहूं जिणमारग नें दीपाइ।
१८. बेहू रिषभदेव नी हूइ चेली, प्रभू बाहुबल रे पासें मेली।
सती समझायनें पाछी आइ।।
१९. त्यांरो वचन बाहूबल मान लीधों, जब मांन तणों मरदन कीधों।
___ छोटा भाइ वांदण री मन आइ।।
२०. सनमुख पग दीधों छोडी अभिमान, जब तुरत ऊपनों केवलग्यांन।
दोनूं बॅनारों गुण जाण्यों भाइ।।
२१. सगली साधवीयां में हुइ रे सिरें, त्यांरा वचन अमोलक रत्न झरें।
त्यांरी बोली सगलां नें सुखदाइ।।
२२. घणा वरसां लगे चारित पाली, त्यां दोषण दूर दीया टाली।
त्यां घणा जीवां नें दीया समझाइ।।
२३. बेहूं बायां री जुगती जोडी, बेहूं मुगत गइ आठु कर्म तोडी।
चोरासी लाख पूर्व आउ पाई।।