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11. यदि त्वया तद् ज्ञातं तत् मामपि वद-अगर तूने उसे जान लिया तो मुझे भी
बता। 12. यदि त्वया स्वगृहं रक्षितं तर्हि वरं कृतम्-अगर तूने अपने मकान की रक्षा की
तो अच्छा किया। 13. यदि त्वया अद्यापि वस्त्रं न विक्रीतम्-अगर तूने आज भी कपड़ा नहीं बेचा। 14. तर्हि तद् मह्यं देहि-तो उसे मुझे दे। 15. यदि त्वया इदानीं पर्यन्तं द्वारं न उद्घाटितम्-अगर तूने अब तक दरवाज़ा नहीं
खोला। 16. तत् केन उद्घाटितम् इति शीघ्रं कथय-तो किसने उसे खोला यह शीघ्र कह। 17. तद् अहं न जानामि-वह मैं नहीं जानता। 18. त्वया जलं पीतं किम्-तूने जल पिया क्या ?
शब्द ग्लानिः-शिथिलता, घिन। अभ्युत्थानम्-उन्नति। खलु-निश्चय से।
मूलम्-जड़। सत्यात्-सत्यता से। परः-श्रेष्ठ, दूसरा, भिन्न। प्रतिष्ठितम्-स्थित है। पिष्टक्व-डबलरोटी।
वाक्य
1. यदा-यदा धर्मस्य ग्लानिः भवति-जब-जब धर्म की शिथिलता होती है। 2. तदा तदा अधर्मस्य अभ्युत्थानं भवति-तब-तब अधर्म की उन्नति होती है। 3. सत्यात् परः धर्मः नास्ति-सत्य से श्रेष्ठ दूसरा धर्म नहीं है। 4. असत्यात् परः अधर्मः न कः अपि अस्ति-असत्य से बड़ा अधर्म कोई भी नहीं
5. त्वं सत्यं वदसि इति वरं करोषि-तू सत्य बोलता है, यह ठीक करता है। 6. कदापि असत्यं न वद-कभी-भी असत्य न बोल। 7. सर्वं खलु धर्ममूलं सत्ये प्रतिष्ठितम्-निश्चय ही सब धर्मों का मूल सत्य में स्थित
8. यः सत्यं न वदति सः असत्यवादी भवति-जो सत्य नहीं बोलता है वह असत्यवादी
होता है। 9. असत्यात् दारिद्रयं वरम् अस्ति-असत्य से गरीबी अच्छी है। 10. त्वं सर्वदा असत्यं किमर्थं वदसि-तू सर्वदा असत्य क्यों बोलता है ? | 11. मया कदापि असत्यं न उक्तम्-मैंने कभी असत्य नहीं बोला।
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