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मतलब यह है कि यहाँ का रूप ऊपर के रूप के समान ही होता है। आगे भी जहाँ-जहाँ रूपों के नीचे (..) ऐसा चिह्न दिया होगा, वहाँ पाठक समझें कि यहाँ का रूप उपरिवत् ही होता है।
आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द इच्छा-ख्वाहिश।
कामात्मता-विषयीपन, कामीपन । चिन्ता-फ़िकर।
जिहा-ज़बान।. दीक्षा-व्रत।
मुक्ता-मोती। रेखा-लकीर।
कन्या-लड़की। निद्रा-नींद।
पूजा-सत्कार। पाषाणपट्टिका-स्लेट। मूर्खता-पागलपन। मलिनता-गंदगी।
क्षुधा-भूख। देवता-देवी।
गीता-गीता। आज्ञा-हुक्म।
चेष्टा-प्रयत्न। जरा-बुढ़ापा।
वाटिका-बगीचा। पत्रिका-पत्र, ख़त।
अपूजा-सत्कार न करना। रूक्षता-रूखापन।
पूपला-खांड की पूरी। हरिद्रा-हल्दी।
सन्ध्या-ध्यान।
वाक्य
1. सः इच्छां करोति-वह इच्छा करता है। 2. त्वया सा मुक्ता कुत्र स्थापिता-तूने वह मोती कहाँ रखा ? 3. गीतायां किम् उक्तम् ?-गीता में क्या कहा है ? 4. तस्य आज्ञया अहम् इदं कार्यं करोमि-उसकी आज्ञा से मैं यह कार्य कर रहा
5. त्वं देवतायाः पूजां कुरु-तू देवता की पूजा कर। 6. तेन पत्रिका प्रेषिता किम्-क्या उसने पत्र भेजा है ? 7. जरायै किम् औषधम्-बुढ़ापे की क्या दवा ? 8. हरिद्रायाः पीतः वर्णः-हल्दी का पीला रंग। 9. तस्य कन्यया मुक्ता न आनीता-उसकी लड़की मोती नहीं लाई। 10. मनुष्यः जिया वदति-मनुष्य ज़बान से बोलता है।
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