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पाठ 47
प्रथम गण-उभयपद परस्मैपद और आत्मनेपद धातुओं के वर्तमान, भूत और भविष्यकाल के रूप पाठकों को अब विदित हो चुके हैं। अब उभयपद धातुओं के रूपों के साथ पाठकों का परिचय कराना है। उभयपद उन धातुओं को कहते हैं जिनके परस्मैपद के भी रूप होते हैं और आत्मनेपद के भी रूप होते हैं। उभयपद की प्रत्येक धातु का रूप दोनों प्रकार से बनता है। जैसे
नी (प्रापणो) = ले जाना
वर्तमान काल, परस्मैपद नयति नयतः
नयन्ति नयसि नयथः
नयथ नयामि नयावः
नयामः
नयते नयसे
वर्तमान काल, आत्मनेपद
नयेते नयेथे नयावहे
नयन्ते नयध्वे नयामहे
नये
नेष्यन्ति
नेष्यति नेष्यसि नेष्यामि
भविष्यकाल, परस्मैपद
नेष्यतः नेष्यथः नेष्यावः
नेष्यथ
नेष्यामः
नेष्यते नेष्यसे नेष्ये
भविष्यकाल, आत्मनेपद
नेष्येते नेष्येथे नेष्यावहे
नेष्यन्ते नेष्यध्वे
नेष्यामहे