________________
6
__अन्य रूप पुल्लिंग ‘अदस्' के समान होते हैं। 'द्वि' शब्द द्विवचन में ही चलता है। इसके प्रथमा, द्वितीया में 'द्वे' रूप होता है। तृतीयादि विभक्ति के अन्य रूप पुल्लिंग के समान होते हैं।
'त्रि' शब्द बहुवचन में ही चलता है। 'त्रीणि' यह रूप प्रथमा तथा द्वितीया में होता है। अन्य रूप पुल्लिंग के समान होते हैं।
'चतुर' शब्द बहुवचनान्त ही है। ‘चत्वारि', यह रूप प्रथमा द्वितीया में होता है। शेष पुल्लिंग के समान हैं।
___ ‘पञ्चन्, षट्, सप्तन्, दशन्' के रूप पुल्लिंग के समान ही नपुंसकलिंग में भी होते हैं। केवल 'अष्ट' शब्द के नपुंसकलिंग में पुल्लिंग के भिन्न रूप होते हैं। 1. अष्ट
4-5
अष्टभ्यः 2. अष्ट
अष्टानाम् 3. अष्टाभिः
अष्टसु 'शत, सहस्र, आयुत, लक्ष, प्रयुत' ये नपुंसकलिंग में 'ज्ञान' शब्द के समान चलते हैं।
शब्द-पुल्लिंग सन्धिः = सुलह, मैत्री। यशस्विन् = यशवाला, कीर्तिमान् । व्याघ्र = शेर। पुरुषव्याघ्रः = पुरुषों में श्रेष्ठ। पित्र्यंशः = पैतृक (धन) का हिस्सा। विग्रहः = युद्ध। भरतर्षभः = भरत (वंश में) श्रेष्ठ। पुरोचनः = एक पुरुष का नाम। वज्रभृतः = वज्र उठानेवाला अर्थात् इन्द्र।
नपुंसकलिंग पैतृक = पिता सम्बन्धी। किल्विष = पाप । अफल = निष्फल । क्षेम = कल्याण।
क्रिया रोचते = पसन्द है। क्रियते = किया जाता है। प्रदीयताम् = दीजिये। ध्रियन्ते = धारण किये जाते हैं। आतिष्ठ = रहो।
विशेषण मधुर = मीठा। निरस्त = अलग किया। सम्मन्तव्यम् = सम्मान योग्य। तुल्य = समान।