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3. रुक्मिणीवचः - रुक्मिण्याः वचः = रुक्मिणीवचः ।
4. अन्यापेक्षा - अन्यस्य अपेक्षा = अन्यापेक्षा ।
5. लघुतरम् - अतिशयेन लघु = लघुतरम् ।
6. आत्मबलातिगे - आत्मनः बलम् = आत्मबलम् । आत्मबलम् अतिक्रम्य गच्छति तत् = आत्मबलातिगम्, तस्मिन् ।
7. शिल्पिसंघनिर्मितं-शिल्पिनाम् संघः = शिल्पिसंघ । शिल्पिसङ्घेन निर्मितं=शिल्पिसङ्घनिर्मितम् ।
8. आफलोदयकर्माणः = फलस्य उदयः = फलोदयः । फलोदयपर्यन्त कर्म येषां ते = आफलोदय-कर्माणः ।
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9. पाणितलस्थः- पाणेः तलः=पाणितलः । पाणितले तिष्ठतीति = पाणितलस्थः । 10. सूक्ष्मदृष्टिः - सूक्ष्मा चासौ दृष्टिश्च = सूक्ष्मदृष्टिः ।
पाठ 23
सर्वनामों के नपुंसकलिंग में कैसे रूप होते हैं, इसका ज्ञान इस पाठ में दिया जा रहा है। सर्वनामों के तृतीया से सप्तमी पर्यन्त विभक्तियों के रूप पूर्वोक्त पुल्लिंग सर्वनामों के समान ही होते हैं। केवल प्रथमा, द्वितीया के रूपों की विशेषता ही पाठकों को ध्यान में रखनी होगी ।
} 'सर्व' शब्द (नपुंसकलिंग)
1.
सम्बोधन
'चरम,
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सर्वम्
सर्व
सर्वे
77
2.
सर्वम्
शेष रूप 'सर्व' शब्द के पुल्लिंग रूपों के समान होते हैं। इसी प्रकार 'विश्व', 'एक', 'उभ', 'उभय' इनके रूप होते हैं। 'उभ' शब्द द्विवचन में ही चलता है तथा 'उभय' के लिए द्विवचन नहीं है ।
सर्वाणि
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27
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इसी प्रकार 'पूर्व, पर, अवर, दक्षिण, उत्तर, अपर, अधर, स्व, अन्तर, नेम' इत्यादि शब्द चलते हैं । 'स्व', 'अन्तर' के विषय में जो कुछ पहले लिखा है, उसे ध्यान में रखना चाहिए।
'प्रथम' शब्द 'ज्ञान' के समान ही नपुंसक में चलता है। इसी प्रकार द्वितय, त्रितय, चतुष्टय, पञ्चतय, अल्प, अर्ध, कतिपय' इत्यादि शब्द चलते
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