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__() तात्पर्यम्-कस्मिंश्चित् काले (11) तात्पर्य-किसी समय एक एकस्यां राजधान्यां चिरयुद्ध प्रसंगात् राज्ञः राजधानी में हमेशा युद्ध होने के कारण कोशागारे द्युम्नसंकोचे समुत्पन्ने स राजा राजा के ख़ज़ाने में (पैसा) कम होने पर प्रजाभ्यो बलिं जग्राह।
उस (शहर के) राजा ने प्रजाओं से 'कर'
लिया। (12) तत् प्रजा नाभिमेनिरे। ता __(12) वह प्रजा (जनों) ने नहीं माना। उपद्रवोऽयम्" इति गणयित्वा नगराद् वे 'कष्ट (है)' यह ऐसा मानकर, शहर बहिः आवासं रचयामासुः।
के बाहर घर बनाने लगे। (13) तत्र वर्तमानाभिः ताभिः संहतिः (13) वहां रहते हुए उन्होंने एकता कृता। ता मिथो अमन्त्रयन-वयं की। वे परस्पर सलाह करने लगे-हम क्लिश्नीमः। राजा तु अस्मत् किमिति क्लेश पाते हैं, राजा हमसे किसलिए व्यर्थ मुधा गृह्णाति ?
(कर) लेता है। (14) अतः परं न वयं राज्ञे किंञ्चिदपि (14) इसके बाद हम राजा को कुछ दास्यामः । इति सर्वा निश्चिक्युः। भी नहीं देंगे। सबने ऐसा निश्चय किया।
(15) तासां एवं निर्णयं सम्प्रधार्य (15) उनका यह निर्णय देखकर, राजा राजाऽत्मनोऽमात्यं तान् प्रति प्रेषयामास। ने अपना मन्त्री उनके पास भेजा।
(16) सोऽमात्यः। प्रजाभ्यः (16) उस मन्त्री ने प्रजाओं को 'पेट 'उदरावयवानां कथां' निवेद्य तासाम् तथा अंगों की कथा' सुनाकर उनकी आनुकूल्यं प्राप। राजा प्रजाश्च सुखम् अनुकूलता प्राप्त कर ली। राजा तथा अन्वभवन्।
प्रजा सुख का अनुभव करने लगे। __(17) यदि वयं राज्ञ भागधेयं न दद्याम (17) अगर हम राजा को कर न तस्य व्ययोपयोगाय धनं न शिष्यते। एवं देंगे, उसके ख़र्च के लिए धन नहीं बचेगा। समापतितेतस्करा बद्धपरिकरा दिवाऽपि ऐसा आ पड़ने पर चोर कमर कसकर दिन लुण्ठनं विधास्यन्ति।
में भी लूट-पाट किया करेंगे। __ (18) एकोऽन्यं 5 न अनुरोत्स्यते। (18) एक-दूसरे को नहीं मनाएगा। मर्यादातिक्रमः प्रमाथाश्च उद्भविष्यन्ति। मर्यादा का उल्लंघन तथा अन्याय होंगे। राजाप्रजाश्च समम् एव न शिष्यन्ति। राजा एवं प्रजा, एक समान, न बच
रहेगी।
9. उपद्रवः+अयम् । 10. राजा+आत्मनः। 11. स:+अमात्यः। 12. प्रजा:+च। 13. तस्करा: लद्धपरिकरा:+ दिवा+अपि। 14. दिवा+अपि। 15. एकः+अन्य। 16. प्रमाथाः+च।
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