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(2) इदम्, उदरम् आयासान् अकृत्वा सुखं खादति ।
(3) यद् अद्ययावज्जातं तद् अस्तु नाम । अद्यप्रभृति इदं श्रमित्वा आत्मानो' भरणं कुर्यात् । न अस्माकं अनेन प्रयोजनम् ।
(4) एवं सशपथं सर्वे निश्चिक्युः । हस्तौ ऊचतुः - यदि अस्य उदरस्य अर्थे अंगुलिम् अपि चालयेव त्रुट्यन्तु नों अखिलाङगुलयः ।
( 5 ) मुखम् उवाच - अहं शपथं करोमि, यदि अस्य अर्थम् एकम् अपि ग्रासं गृहामि कृमयः आक्रमन्तु माम् ।
(6) दन्ता ऊचुः ' - यदि अस्य कृते ग्रासं चर्वामः ' भंगः उपैतु अस्मान् ।
(7) एवं शपथेषु कृतेषु यो निश्चयः कृतस्तस्य पालन आवश्यकं बभूव ।
(8) एवं जाते सर्वे अवयवा अशुष्यन् । अस्थि चर्म - मात्रं अवशिष्यत् ।
( 9 ) तदा " न साधु कृतं अस्माभिः " इति सर्वेषां चक्षुषी उन्मीलिते - “उदरेण विना वयं अगतिकाः । "
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( 10 ) तत् स्वयं न श्राम्यति । परं यावद वयं तस्य पोषं विदध्मः तावद् अस्माकं पोषणं भवति इति सर्वे सम्यग् जज्ञिरे ।
(भोजन आदि) इकट्ठा करते हैं । ( 2 ) परन्तु यह पेट श्रम न करके आराम से खाता है I
(3) जो आज तक हुआ सो हुआ । आज से यह श्रम करके अपना भरण (पोषण) करे। हमारा इससे (कोई) वास्ता नहीं ।
(4) इस प्रकार शपथपूर्वक सबने निश्चय किया। हाथ बोलने लगे- अगर इस पेट के लिए अंगुली भी चलाएं तो टूट जाएं हमारी सब अंगुलियां ।
(5) मुख बोला- मैं शपथ करता हूं, अगर इसके लिए एक भी कौर लूं, तो कीड़े आ पड़ें मुझ पर ।
(6) दांत बोले- अगर इसके लिए एक टुकड़ा भी चबाएं तो टूट आ जाए हम
पर ।
(7) इस प्रकार शपथें कर चुकने पर जो निश्चय किया गया, उसका पालन आवश्यक हो गया ।
(8) इस प्रकार होने पर सब अवयव सूख गये । हड्डी- चमड़ी-भर शेष रह गई ।
( 9 ) तब, “ठीक नहीं किया हमने, " सो सबकी आँखें खुल गईं- "पेट के बिना हमारी गति नहीं है ।"
( 10 ) वह (पेट) स्वयं तो नहीं श्रम करता, परन्तु जब तक हम उसका पोषण करते हैं, तब तक (ही) हमारा पोषण होता है, ऐसा सबने ठीक प्रकार जान लिया ।
13. यावत् + जातम् । 4. आत्मनः + भरणं । 5. नः+अखिल + अंगुलयः । 6 दन्ताः + ऊचुः 7. चर्वामः+भंग ।
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8. कृतः+तस्य ।