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कहा-“हे स्वामिन् ! कौन-सा उपाय है
हमारे जीने के लिए। (2) अस्ति अत्र क्षुद्रजन्तूनां निमज्जन- (2) यहां छोटे प्राणियों के लिए स्नान स्थानम् । वयं तु निमज्जनाऽभावाद् अन्धा का स्थान है। हम तो स्नान न होने से इव सञ्जाताः।
अन्धे के समान हो गए हैं। (3) क्व यामः ? किं कुर्मः ?" ततो ___ (3) कहां जाएं, क्या करें ?" पश्चात् हस्तिराजो नातिदूरं गत्वा निर्मलं हृदं हाथियों के राजा ने समीप ही जाकर एक दर्शितवान्।
स्वच्छ तालाब दिखलाया। (4) ततो दिनेषु गच्छत्सु तत्तीरावस्थिताः (4) तब दिन व्यतीत होने पर उस क्षुद्रशशकाः गजपादाहति'भिः चूर्णिताः। किनारे पर रहनेवाले छोटे ख़रगोश हाथियों
के पांवों के आघात से चूर्ण हुए। (5) अनन्तरं शिलीमुखो नाम शशकः ___(5) बाद में शिलीमुख नामक एक चिन्तयामास-अनेन गजयूथेन खरगोश सोचने लगा-इस प्यास से त्रस्त पिपासा कुलेन प्रत्यहम् अत्र आगन्तव्यम् ___ हाथियों के समूह ने हर दिन यहां आना
(6) अतो विनश्यति अस्मत्कुलम्। (6) इसलिए नाश होता है हमारा ततो विजयो नाम वृद्धशशकोऽवदत्। परिवार । तब विजय नामक बूढ़ा ख़रगोश
बोला। __(7) “मा विषीदत। मया अत्र प्रतीकारः (7) “दुःख न कीजिए, मैंने यहां कर्तव्यः।" ततोऽसौ प्रतिज्ञाय चलितः। प्रतिबन्ध करना है" पश्चात् वह प्रतिज्ञा
करके चला। (8) गच्छता च तेन आलोचि तम्-कथं (8) जाते हुए उसने सोचा-किस मया गजयूथस्य समीपे स्थित्वा वक्तव्यम्। प्रकार मैंने हाथियों के समूह के पास यतः गजः स्पृशन् अपि हन्ति । अतो अहम् रहकर बोलना है, क्योंकि हाथी स्पर्श पर्वत शिखरम् आरुह्य यूथनाथं संवादयामि। करने से ही मारता है। इस कारण मैं
पहाड़ की चोटी पर चढ़कर हाथियों के समुदाय के स्वामी के साथ बातचीत
करता हूं। (9) तथा अनुष्ठिते यूथनाथः (9) वैसा करने पर समूह का स्वामी उवाच-"कः त्वम् । कुतः समायातः ?" बोला-"तू कौन है। कहां से आया स ब्रूते-“शशकोऽहम् । भगवता चन्द्रेण है ?" वह बोलता है- "मैं ख़रगोश (हूं)।
12. निमज्जन+अभाव। 3. तत्+तीर+अवस्थिताः। 4. पाद्+आहर्तिः। 5. पिपासा आकुल 6. प्रति+अहम् । J7. ततः+असौ। 8. शशक+अहं।