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4. सः ओदनं भक्षयिष्यति - वह चावल खाएगा।
5. त्वम् आम्रं भक्षयिष्यसि - तू आम खाएगा । 6. अहं मुद्गौदनं भक्षयिष्यामि - मैं खिचड़ी खाऊँगा ।
7. यदि सः वनं प्रातः गमिष्यति - अगर वह वन को प्रातःकाल जाएगा ।
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8. तर्हि आम्रं भक्षयिष्यति - तो आम खाएगा ।
9. अहं तत्र गमिष्यामि फलं च भक्षयिष्यामि - मैं वहाँ जाऊँगा और फल खाऊँगा । 10. सः गृहं गमिष्यति मोदकं च भक्षयिष्यति - वह घर जाएगा और लड्डू खाएगा। 11. किं सः अन्नं भक्षयिष्यति -क्या वह अन्न खाएगा ?
12. तथा तत्र अहम् आम्रं भक्षयिष्यामि - वैसे वहाँ मैं आम खाऊँगा ।
13. यथा सः ओदनं भक्षयिष्यति - जैसे वह चावल खाएगा।
विभक्तियां
अब कुछ विभक्तियों के रूप देते हैं, जिनको स्मरण करने से पाठकों की योग्यता बहुत बढ़ सकती है ।
संस्कृत में सात विभक्तियाँ होती हैं (ये हिन्दी में भी हैं) । -
'देव' शब्द के सातों विभक्तियों के रूप
विभक्ति के रूप
देवः
देवम्
देवेन
देवाय
विभक्ति का नाम
1. प्रथमा 2. द्वितीया
3. तृतीया 4. चतुर्थी
5. पंचमी
6. षष्ठी
7. सप्तमी
हिन्दी में अर्थ
देव (ने)
देव को
देवात्
देवस्य
देव के द्वारा (ने, से)
देव के लिए ( को )
देव से
देव का, की, देव में,
देवे
पर
सम्बोधन
[] देव
हे देव
पाठक देख सकते हैं कि इन रूपों का बातचीत करने में कितना उपयोग होता
है । उक्त रूपों का उपयोग करके अब कुछ वाक्य देते हैं
1. देवः तत्र गच्छति - देव वहाँ जाता है।
2. तत्र देवं पश्य' - वहाँ देव को देख । '
के
1. उक्त वाक्यों में 'पश्य' आदि शब्द नए आए हैं, उनका अर्थ हिन्दी के वाक्यों को देखकर पाठक जान सकते हैं । अर्थ देखने के लिए 1, 2, 3, 4 अंक शब्दों के ऊपर रखे हैं ।