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3. देवेन अन्नं दत्तम्-देव के द्वारा अन्न दिया गया। 4. देवाय फलं देहि-देव के लिए फल दे। 5. देवात् ज्ञानं लभते-देव से ज्ञान पाता है। 6. देवस्य गृहम् अस्ति -देव का घर है। 7. देवे ज्ञानम् अस्ति-देव में ज्ञान है।
सम्बोधन-हे देव ! त्वं तत्र गच्छसि किम् ?-हे देव ! तू वहाँ जाता है क्या ?
इस प्रकार पाठक वाक्य बना सकेंगे। उनको चाहिए कि वे इस प्रकार नये शब्दों का उपयोग करते रहें। अब उक्त वाक्यों के निषेध अर्थ के वाक्य देते हैं। इनका अर्थ पाठक स्वयं जान सकेंगे, इसलिए नहीं दिया है।
1. देवः तत्र न गच्छति। 2. तत्र देवं न पश्य। 3. देवेन अन्नं न दत्तम्। 4. देवाय फलं न देहि। 5. देवात् ज्ञानं न लभते। 6. देवस्य गृहं न अस्ति। 7. देवे ज्ञानं न अस्ति । सम्बोधन-हे देव ! त्वं तत्र न गच्छसि किम् ?
पाठकों को ध्यान रखना चाहिए कि ये वाक्य कोई विशेष अर्थ नहीं रखते। यहाँ इतना ही बताया है कि नकार के साथ वाक्य कैसे बनाए जाते हैं। इनको देखकर पाठक बहुत-से नए वाक्य बनाकर बोल सकते हैं।
वाक्य
अहं नैव गमिष्यामि। सः मांसं नैव भक्षयिष्यति। सः आनं कदा भक्षयिष्यति ? यदा त्वं मोदकं भक्षयिष्यसि । सः नित्यं कदलीफलं भक्षयति । देवः इदानी कुत्र अस्ति ? देवः सर्वत्र अस्ति। सः कदा आगमिष्यति ? सः अत्र श्वः प्रातः आगमिष्यति। यत्र-यत्र अहं गच्छामि, तत्र-तत्र सः नित्यम् आगच्छति।
पाठ 5
पूर्वोक्त वाक्यों तथा शब्दों को याद करने से पाठक स्वयं कई वाक्य बनाकर प्रयोग में ला सकेंगे। हमने शब्द तथा वाक्य इस प्रकार रखे हैं कि व्याकरण का बोझ पाठकों पर न पड़कर उनके मन पर व्याकरण का संस्कार स्वयं हो जाए और वे स्वयं वाक्य बना सकें। इसलिए पाठकों को चाहिए कि वे पहला पाठ याद किए बिना आगामी पाठ प्रारम्भ न करें, तथा जो-जो शब्द पाठों में दिए हुए हैं उनसे अन्यान्य [17]