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17. तत् ते पदं संग्रहेण ब्रवीमि-वह तुमको स्थान संक्षेप से कहता हूँ। 18. ओम् इति एतत्-ओ३म् ही यह है।
पाठ 49
.. मूल्यम्-कीमत, मूल्य । पञ्च-पाँच । रूप्यम्-रुपया। मुद्रा-रुपया। मुद्रयैकया(मुद्रया-एकया) एक रुपये से। अष्ट-आठ। पणः-पैसा। हट्टम्-दुकान, हट्टी। अच्छम्-अच्छा। वणिक्-बनिया। कीदृशः-कैसा। कियान्-कितना। व्ययः-खर्च। पञ्चलक्षाणि-पाँच लाख। हानिः-नुकसान। संवत्सरः-वर्ष । जातः-हो गया। लक्षद्वयम्दो लाख । लक्षत्रयम्-तीन लाख । कुतः-कहाँ से। क्व-कहाँ। केदारम्-खेत। पक्वःपका हुआ। भावः-भाव। अर्घः-भाव। प्रस्थम्-सेर। सपाद-सवा। सेटकः-सेर। गुडः-गुड़। प्राप्येते-मिलते हैं, प्राप्त होते हैं। एला-इलायची। मिथ्याकरी-झूठा व्यवहार करने वाला। क्रय-विक्रयौ-लेन-देन, ख़रीद-बिक्री। बहुमूल्यम्-कीमती। आविकम्-ऊनी कपड़ा। शाकम्-साग-भाजी। लुनाति-काटता है। लुनन्तु-काटें।
अस्य किं मूल्यम्-इसका क्या मूल्य है ? पञ्च रूप्याणि गृहाण-पाँच रुपये लो। इदम् वस्त्रं देहि-यह वस्त्र दो। अद्य-श्वः घृतस्य कः अर्घ-आजकल घी का क्या भाव है ? मुद्रैकया सपादप्रस्थं विक्रीयते-एक रुपया का सवा सेर बिकता है। गुडस्य को भावः-गुड़ का क्या भाव है ? अष्टभिः पणैः एकसेरकमानं ददाति-आठ पैसों का एक सेर-भर देता है। त्वम् आपणं गच्छ-तू बाज़ार जा। एलाम् आनय-इलायची ले आ। आनीता, गृहाण-ले आया, लो। कस्य हट्टे दधिदुग्धे अच्छे प्राप्येते-किसकी दुकान पर दही और दूध अच्छा मिलता है। धनपालस्य-धनपाल को। सः सत्येन एव क्रय-विक्रयौ करोति-वह सत्य ही से लेन-देन करता है। श्रीपतिः वणिक् कीदृशः अस्ति-श्रीपति बनिया कैसा है ? सः मिथ्याकारी-वह झूठा है। अस्मिन् संवत्सरे कियान् लाभो व्ययः च जातः-इस वर्ष में कितना लाभ और ख़र्च हुआ। पञ्चलक्षाणि लाभः-पाँच लाख (रुपये) लाभ । लक्षद्वयस्य व्ययः च-और दो लाख का खर्च (हआ)। मम खलु अस्मिन्वर्षे लक्षत्रयस्य हानिः जाता-मेरी तो इस वर्ष में तीन लाख की हानि हो गई। कस्तूरी कस्माद् आनीयते-कस्तूरी कहाँ से लाई जाती है ? नयपालात्-नेपाल से। बहुमूल्यम् आविकं कुतः आनयन्ति-कीमती दुशाला कहाँ से लाते हैं ? कश्मीरात्-कश्मीर से। कुत्र गच्छसि-कहाँ जाते हो ? पाटलिपुत्रम्-पटना को। कदा आगमिष्यसि-कब आओगे ? एकस्मिन् मासे-एक महीने में। स क्व गतः-वह कहाँ
गया ? शाकम् आनेतुम्-शाक लाने को। सम्प्रति केदाराः पक्वाः-इस समय खेत 148] पक गए हैं। यदि पक्वाः तर्हि लुनीत-यदि पके हैं तो काटो।