________________
अन्धकार। हिरण्मय-सुवर्णमय। पात्रम्-बर्तन। सत्यम्-सचाई। पूषन-पुष्ट करने वाला, बढ़ाने वाला। दृष्टये-दर्शन के लिए। वित्तम्-धन । तर्पणीयः-तृप्त होने योग्य। अपावृणु-खोल। आप्यायन्तु-बढ़ें, वृद्धि और उन्नति को प्राप्त हो जाएं। तर्कः-शक्य-अशक्य का विचार । आमनन्ति-विचार करते हैं। तपांसि-अनेक प्रकार के तप। त्यक्त-दत्त, दान, त्याग किया हुआ। भुञ्जीथाः-भोगो। गृधः-ललचाओ। जिजीविषेत-जीने की इच्छा करे। शतम्-सौ। समाः-वर्ष, साल। प्रविशन्ति-घुसते हैं। अविया-जो विद्या से उल्टी हो। उपासते-(उप-आसते)-पास बैठते हैं, उपासना करते हैं। अपिहितम्-ढका। पदः-स्थान, अवस्था, प्राप्तव्य । चरन्ति-करते हैं, आचरण करते हैं। संग्रह-संक्षेप, सार।
उपनिषद् का उपदेश 1. ईशा वास्यम् इदं सर्वम्-ईश्वर के व्यापने योग्य है यह सब। 2. तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः-उसके दिए हुए से भोग करो। 3. मा गृधा कस्य स्विद्धनम्-न ललचाओ किसी के भी धन पर। 4. कुर्वन् एव इह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः-करता हुआ ही यहाँ कर्म, जीने
की इच्छा करे सौ वर्ष। 5. न कर्म लिप्यते नरे-नहीं कर्म का लेप होता है नर में। 6. अन्यं तमः प्रविशन्ति ये अविद्याम् उपासते-घने अँधेरे को प्राप्त होते हैं जो ___अज्ञान के पास रहते हैं। 7. हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य अपिहितं मुखम्-सोने के बर्तन से सत्य का ढका
है मुख। 8. तत् त्वं पूषन् अपावृणु सत्य-धर्माय दृष्टये-उसको तू, हे पोषक, खोल दे सत्य-धर्म
को देखने के लिए। 9. कृतं स्मर-किए हुए को स्मरण कर। 10. आप्यायन्तु मम अङ्गानि, वाक्, प्राणः, चक्षुः, श्रोत्रम् अथो बलम्, इन्द्रियाणि
च-बढ़ जाए मेरे अवयव, वाणी, प्राण, आँख, कान, बल और इन्द्रियाँ। 11. न तत्र चक्षुः गच्छति, न वाक् गच्छति-न ही वहाँ आँख जाती है, न ही वाणी
जाती है। 12. न वित्तेन तर्पणीयः मनुष्यः-न ही धन से तृप्त होता है मनुष्य। 13. न एषा तर्केण मतिः आपनीया-न ही यह तर्क से बुद्धि प्राप्त होने वाली है। 14. सर्वे वेदा यत् पदम् आमनन्ति-सब वेद जिस स्थान का मनन करते हैं। 15. तपास सर्वाणि च यद् वदन्ति-और जो सब तप' बोलते हैं। 16. यद् इच्छन्तः ब्रह्मचर्यं चरन्ति-जिसकी इच्छा करते हुए ब्रह्मचर्य पालते हैं। 14