________________
के समान (सामथ्य) हो सकता है। गुरुः-ईश्वरेण रचितस्य वेदस्य अध्ययनानन्तरम् एव ग्रन्थ-रचने कस्याऽपि सामर्थ्य
स्यात् । न च अन्यथा-ईश्वर द्वारा रचे हुए वेद के अध्ययन के पश्चात् ही ग्रन्थ रचने में किसी का भी सामर्थ्य होता है। नहीं और (किसी) प्रकार से। नैव कश्चित् अपि पठन-पाठनम् अन्तरा विद्वान् भवति-नहीं कोई भी पढ़ने-पढ़ाने के बिना विद्वान् होता है। किञ्चिद् अपि शास्त्रं पठित्वा, उपदेशं श्रुत्वा, व्यवहारं च दृष्ट्वा एव, मनुष्याणां ज्ञानं भवति-कोई एक भी शास्त्र पढ़कर उपदेश सुनकर और व्यवहार देखकर ही मनुष्यों को ज्ञान होता है। यथा महारण्यस्थानां मनुष्याणां, उपदेशम् अन्तरा, पशुवत्प्रवृत्तिः भवति-जिस प्रकार बड़े जंगल में रहने वाले मनुष्यों की, उपदेश के बिना पशु-समान प्रवृत्ति होती है। तथैव आदि-सृष्टिम् आरभ्य, अद्यपर्यन्तं, वेदोपदेशम् अन्तरा सर्वमनुष्याणां प्रवृत्तिः भवेत्-वैसे ही आदिसृष्टि से प्रारम्भ करके, आज तक, वेद के उपदेश के बिना, सब मनुष्यों की प्रवृत्ति होवे।
वाक्य निराकारेण ईश्वरेण एव यथा जगत् निर्मितं तथैव वेदः अपि निर्मितः। हस्तपादादिसाधनं विना सः ईश्वरः यथा सृष्टिं रचयति तथैव वेदम् अपि सः एव रचयति। यथा सहायेन विना मनुष्याः कार्यं कर्तुं न शक्नुवन्ति तथा ईश्वरे नास्ति। सः अन्यस्य सहायेन विना अपि सर्वं स्वकीयं रचनाकार्यं कर्तुं शक्नोति। सः सर्वशक्तिमान् अस्ति, मनुष्यवत् अल्पशक्तिमान् नैवास्ति।
पाठ 47
मनुष्येभ्यः-सब मनुष्यों के लिए। स्वाभाविकम्-जन्म के साथ पाया हुआ। वेदानाम्-सब वेदों का। अर्हति-योग्य होता है। मन्यते-माना जाता है। वेदोत्पादनम्-(वेद-उत्पादन) वेदों का उत्पन्न होना। विदुषाम्-विद्वानों के।सकाशात्-पास से। रच्यते-रचा जाता है। सृष्टेः-सृष्टि के। आसीत्-था। क्रमः-सिलसिला। विद्या-सम्भवः-विद्या) का होना। ग्रन्थेभ्य-बहुत पुस्तकों से। उत्कृष्ट-उत्तम। तदुन्नत्या-(तत् उन्नत्या)-उसकी उन्नति (बुद्धि) से। ग्रन्थ-रचनाम्-पुस्तक बमाना। मात्र-केवल। अस्मदादिभिः-हम हैं आदि। अनेकविधिम्-अनेक प्रकार का।।145