________________
शब्द
उपेत्य-पास जाकर। भगवन्तम्-भगवान को। परमः-सबसे बड़ा। पप्रच्छ-पूछा। स्थानम्-जगह। भक्तः-भगत। उपविशति-बैठता है। उपविश्य-बैठकर । प्रत्यक्षीकरिष्यति-साक्षात् करेगा। उपविशसि-(तू) बैठता है। वसति-(वह) रहता है। वससि-(तू) रहता है। वसामि-रहता हूं। वत्स्यति-(वह) रहेगा। वत्स्यसि-(तू) रहेगा। वत्स्यामि-रहूँगा। उपवेक्ष्यसि-(तू) बैठेगा। उपवेक्ष्यति-(वह) बैठेगा। आह-कहा। भूतलम्-पृथ्वी, भूलोक। निवसति-(वह) रहता है। निवससि-(तू) रहता है। निवसामि-रहता हूँ। कृषीवलः-किसान। विस्मितः-हैरान। प्रस्थितः-चला। प्रत्यक्षीचकार-साक्षात् किया। प्रत्यक्षीकरोषि-(तू) प्रत्यक्ष करता है। प्रत्यक्षीकृतम्-साक्षात् किया। प्रत्यक्षीकरोमि-प्रत्यक्ष करता हूँ। पृष्टम्-पूछा। प्रत्यक्षीकरोति-(वह) प्रत्यक्ष करता है। दृष्टम्-देखा। प्रत्याह-जवाब दिया। विशेष-ख़ास (बात)। मनः-मन। एकाग्रम्-स्थिर। जानीहि-जान। उपासना-भक्ति। भवितुम्-होने के लिए। उपविष्टः-बैठ गया। उषित्वा-रहकर। उषितः-रहा हुआ। निवत्स्यति-(वह) रहेगा। वसितुम्-रहने के लिए। निवत्स्यामि-रहूँगा। निवत्स्यसि-(तू) रहेगा।
श्लोक यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राऽफलाः क्रियाः।। 1।। (मनुस्मृति) अर्थ-(यत्र) जहाँ (तु) तो (नार्यः) स्त्रियां (पूज्यन्ते) पूजी जाती हैं, (तत्र) वहाँ दिवताः) देवता (रमन्ते) निवास करते हैं। (तु) परन्तु (यत्र) जहाँ (एताः) ये स्त्रियां (न पूज्यन्ते) नहीं पूजी जातीं (तत्र) वहाँ (सर्वाः) सब (क्रियाः) कार्य (अफलाः) निष्फल हैं।
उपकारोऽपि नीचानाम् अपकाराय जायते।
पयःपानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम् ।। अर्थ-(नीचाना) नीचों की (उपकारः) भलाई (अपि) भी (अपकाराय) अपने नुकसान के लिए (जायते) होती है। जैसे (भुजङ्गाना) सांपों को (पयःपान) दूध पिलाना (केवल) केवल (विषवर्धनम्) विष बढ़ानेवाला होता है।
सुलभाः पुरुषाः राजन् सततं प्रियवादिनः। । अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः।। ___अर्थ-हे (राजन) राजा ! (सतत) हमेशा (प्रियवादिनः) प्यारा बोलने वाले (पुरुषाः) मनुष्य (सुलभाः) आसानी से मिलते हैं। परन्तु (अप्रियस्य) अप्रिय (च) और (पथ्यस्य) हितकारक बात (वक्ता) कहनेवाला (च श्रोता) और सुननेवाला (दुर्लभः) मुश्किल से - मिलता है।