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कः चित्-कोई एक। केनचिद-किसी एक ने। कस्मिंश्चित्-किसी एक में। कस्यचित्-किसी एक का।
प्रसुप्तः-सो गया। सर्पः-सांप । हतः-मारा । प्रबुद्धः-जागा। ब्राह्मणः-ब्राह्मण। प्रतिवसति-रहता है। कारणम्-कारण। आह-बोला। एकाकी-अकेला। व्रज-जा। व्रजति-(वह) जाता है। व्रजसि-(तू) जाता है। व्रजामि-जाता हूँ। मातः-हे माता। निश्चयम्-निश्चय । कुक्कुरम्-कुत्ते को। प्रस्थितः-चला। श्रमः-मेहनत । श्रान्तः-थका हुआ।अधः-नीचे। उपविश्य-बैठकर । दृष्टम्-देखा। दृष्ट्वा-देखकर । प्रसन्नः-खुश। । अब्रवीत्-बोला। अरे-अरे। मात्रा-माता से। सहायः-मददगार। कर्तव्यम्-करने योग्य । एकाकिना-अकेले। गन्तव्यम्-जाने योग्य । वक्तव्यम्-बोलने योग्य । दातव्यम्-देने योग्य। पठितव्यम्-पढ़ने योग्य। लेखितव्यम्-लिखने योग्य। द्रष्टव्यम्-देखने योग्य। अत्तव्यम्-खाने योग्य। स्थातव्यम्-रहने योग्य।
मन्त्रः
विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव। यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥1॥
अर्थ-हे (देव) ईश्वर, हे (सवितर) सविता, सबके उत्पन्न करने वाला ईश। (विश्वानि) सब (दुरितानि) बुराइयाँ, पाप (परा) दूर (सुव) फेंक। (यद) जो (भद्र) कल्याण (तत्) वह (नः) हमारे लिए (आ सुव) समीप कर।
अद्भिर्गात्राणि शुध्यन्ति, मनः सत्येन शुध्यति। _ विद्यातपोभ्यां भूतात्मा, बुद्धिर्ज्ञानेन शुध्यति ॥2॥ मनुस्मृति
अर्थ-(अद्भिः ) पानी से (गात्राणि) इन्द्रिय, शरीर के अवयव (शुध्यन्ति) शुद्ध होते हैं। (मनः) मन (सत्येन) सचाई से (शुध्यति) शुद्ध होता है। (विद्यातपोभ्यां) विद्या
और तप से (भूतात्मा) जीवात्मा, तथा (बुद्धिः) बुद्धि (ज्ञानेन) ज्ञान से (शुध्यति) शुद्ध होती है।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः ॥3॥ मनुस्मृति अर्थ-(सत्य) सत्य (ब्रूयात्) बोले (प्रिय) प्रिय (ब्रूयात्) बोले। (न ब्रूयात्) न बोले (सत्य) सच (अप्रिय) कड़वा। (च) और (प्रिय) प्यारा, परन्तु (अनृत) असत्य (न) न (ब्रूयात्) बोले। (एष) यह (सनातनः) हमेशा का (धर्मः) धर्म है।
पाठ 44
1. एकदा नारदः भगवन्तम् उपेत्य पप्रच्छ-एक बार नारद ने भगवान् के पास जाकर. 139