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विचार्य एव सर्वं कार्यं कर्तव्यम् । यथा राज्ञा अविचार्य एव महता मूल्येन शुकः क्रीतः तथा केन अपि मूर्खत्वं न कर्तव्यम् ।
पाठ 39
शब्द
ईश्वरः - ईश्वर | पालकः - पालन करनेवाला । जनः - मनुष्य । द्वारपालः - दरबान, चपरासी । कर्दमः - कीचड़ । तन्तुवायः - जुलाहा । सौचिकः - दर्ज़ी । गोधूमः - गेहूँ, कनक । विडालः– बिल्ली । मण्डूकः - मेंढक । वृषभः - बैल |
ऊपर लिखे शब्दों की सातों विभक्तियों के रूप पूर्वोक्त 'देव' शब्द के समान होते हैं।
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वाक्य
1. द्वारपालकः द्वारि तिष्ठति गृहं च रक्षति - दरबान दरवाज़े पर खड़ा रहकर घर की रक्षा करता है ।
2. वानरः वृक्षे स्थित्वा फलं भक्षयति- बन्दर वृक्ष पर रहकर फल खाता है ।
3. ईश्वरः पालकः अस्ति, सर्वं च विश्वं सर्वदा रक्षति - परमेश्वर रक्षक है और सारे संसार की सदा रक्षा करता है।
4. ह्यः तेन द्वारपालेन चौरः अतीव ताडितः - कल उस पहरेदार ने चोर को बहुत
मारा ।
5. मण्डूकः जले अस्ति, तं पश्य- मेंढक पानी में है, उसे देख | 6. विडालः दुग्धं पिबति - बिल्ला दूध पीता है।
क्रिया
पतति - (वह) गिरता है । पतसि - (तू) गिरता है। पतामि- गिरता हूँ । चलति - (वह) चलता है । पतिष्यति - (वह) गिरेगा । पतिष्यसि - (तू) गिरेगा । पतिष्यामि - गिरूँगा । चलसि - (तू) चलता है । चलामि- चलता हूँ । चलिष्यति - (वह) चलेगा। चलिष्यसि - (तू) चलेगा। चलिष्यामि - चलूँगा ।
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