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यहाँ नहीं दिए जा रहे।
सब अकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप अकारान्त पुल्लिंग शब्द के समान ही होते हैं, केवल प्रथमा तथा द्वितीया के रूप कुछ भिन्न होते हैं। देखिए
अकारान्त नपुंसकलिंग 'भोजन' शब्द 1. प्रथमा
भोजनम् भोजन 2. द्वितीया
भोजनम् भोजन को 3. तृतीया भोजनेन भोजन से 4. चतुर्थी
भोजनाय भोजन के लिए 5. पञ्चमी
भोजनात् भोजन से 6. षष्ठी
भोजनस्य
भोजन का 7. सप्तमी
भोजने
भोजन में सम्बोधन (हे) भोजन (हे) भोजन इसी प्रकार अन्य सब अकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के रूप होते हैं। इन रूपों को देखकर पाठकों ने जान लिया होगा कि अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग शब्दों की प्रथमा तथा द्वितीया के अतिरिक्त अन्य विभक्तियाँ एक-सी होती हैं।
पाठकों ने देखा होगा कि तृतीया विभक्ति का जो 'न' है वह कई शब्दों में 'ण' हो जाता है, और कई शब्दों में 'न' ही रहता है। इसका पूरा-पूरा नियम हम द्वितीय भाग में देंगे, परन्तु पाठकों को यहाँ इतना ही ध्यान में रखना चाहिए कि जिन शब्दों में 'र' व 'ष' अक्षर होता है, प्रायः इन शब्दों के 'न' का ही 'ण' बनता है। परन्तु कई अवस्थाएँ ऐसी आती हैं जिनमें 'न' का 'ण' नहीं बनता; जैसे(1) देवेन, भोजनेन, गमनेन। (2) रामेण, नरेण, पुरुषेण। (3) कृष्णेन, रथेन, रावणेन।
(1) देव, भोजन, गमन शब्दों में 'र' अथवा 'ष' वर्ण न होने से 'ण' नहीं हुआ, (2) राम, नर और पुरुष शब्दों में 'र' व 'ष' होने से 'ण' बना है, तथा (3) कृष्ण, रथ और रावण शब्दों में कुछ विशेष स्थिति न होने के कारण 'ण' नहीं बना। इस विशेष स्थिति का वर्णन हम आगे करेंगे। परंतु अभी इस विशेष की परवाह न करके पाठकों को रूप बनाने चाहिएं और वाक्यों में उनका प्रयोग करना चाहिए।
अकारान्त नपुंसकलिंग शब्द पुण्यम्-पुण्य । पातकम्-पाप।पोषणम्-पुष्टि । प्रक्षालनम्-धोना। ध्यानम्-ध्यान। भ्रमणम्-भ्रमण, घूमना। शीतनिवारणम्-शीत का निवारण। सत्यम्-सत्य। - स्नानम्-स्नान। शूर्पम्-छाज। फलकम्-फट्टा। जीरकम्-जीरा। चक्रम्-चक्र।