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प्रमाद
साधना का तीसरा बाधक तत्त्व है-प्रमाद। प्रमाद का एक अर्थ है विस्मृति। इससे आत्मा या चैतन्य की विस्मृति होती है। इस अवस्था में मनुष्य का मन इन्द्रिय-विषयों के प्रति आकर्षित होता है। शांत बने हुए क्रोध, मान, माया और लोभ पुनः उभर आते हैं, जागरूकता समाप्त हो जाती है, करणीय और अकरणीय का बोध धुंधला हो जाता है।
प्रमाद का दूसरा अर्थ है-अनुत्साह। प्रमत्त अवस्था में संयम और क्षमा आदि धर्मों के प्रति मन में अनुत्साह आ जाता है, सत्य के आचरण में शिथिलता आ जाती है; अकर्मण्यता
और अलसता की स्थिति बन जाती है। यह आध्यात्मिक विकास का बाधक तत्त्व है।
२६ मार्च २००६