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अविरति
साधना का दूसरा बाधक तत्त्व है-आकांक्षा। इसी कारण वह पदार्थ में अनुरक्त होता है, उसे प्राप्त करना और भोगना चाहता है। इस अवस्था में मनुष्य की दृष्टि पदार्थ के प्रति आकृष्ट होती है। मूर्छा के कारण उसे जीवन की आकांक्षा और मृत्यु का भय भी विचलित करता रहता है।
सामाजिक जीवन में पारस्परिक टकरावों और संघर्षों का कारण यह अविरति की मनोदशा ही है।
२००६