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कषाय
दो
साधना का बाधक चौथा तत्त्व है - कषाय । राग और द्वेष-ये मूल दोष हैं। राग माया और लोभ की प्रवृत्ति को तथा द्वेष क्रोध और मान को जन्म देता है। क्रोध, मान, माया और लोभ चित्त को रंगीन बना देते हैं इसलिए इन्हें कषाय कहा जाता है। मिथ्यात्व अविरति और प्रमाद-ये कषाय के उदय से ही निष्पन्न होते हैं। इन तीनों आस्रवों के समाप्त हो जाने पर भी कषाय आश्रव से कर्म परमाणुओं का आगमन होता रहता है।
३० मार्च २००६
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