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आधार
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सोले बाल और रहने ला शाने आधारभूत चटाई और वृक्ष से संलग्न रहते है। इसलिए ऐने आधार को 'औपश्लेषिक' आधार कहा
जाता है। (२) सामीप्यक-जिससे समीपता का बोध हो उसे 'सामीप्यक आधार'
कहते हैं। जैसे ----वटे गाव:-गायें बरगद के नीचे खड़ी है। अशोके सीता आमाञ्चके ----अशोक वृक्ष के नीचे सीता बैठी थी। इनसे गायें
और सीता का बरगद के नीचे या आसपास रहना जाता है । (३) अभिव्यापः - व्याप्य का बोध कराने वाले शब्द को 'अभिव्यापक __ आधार' कहते हैं। जैसे—क्षीरे घृतम् । तिलेषु तैलम् । कुसुमेषु
गन्धः । यहाँ दूध, तिल और कुसुम व्यापक हैं और घी, ते और
गंध व्याप्य हैं। (४) वैषयिक-जिससे विषय (निवास करने के क्षेत्र) का बोध हो उसे
'वैषयिक आधार' कहते हैं। जैसे-तपोवने तपस्वी वसति । अरण्ये
सिंहो गर्जति । (५) नैमिनिक जिस शब्द से होने वाले कार्य के निमित्त की सूचना
मिलती है उसे 'नैमित्तिक आधार' कहते हैं। जैसे--युद्धे संनह्यते ...--- युद्ध के लिए तैयार होता है। पर्वणि सज्जति--पर्व के लिए तैयार होता है। यहाँ लड़ने के लिए तैयार होने का और सज्जित होने का निमित्त युद्ध और पर्व हैं । ) औपचारिक-उपचार यानि संकेत को मान कर जो कहा जाता है
उसे 'औपचारिक आधार' कहते हैं। जैसे-वृक्षाग्ने विद्युत् ... वृक्ष पर बिजली चमक रही है । अगुल्य ग्रे करिशतम्-अङ्गुलि की नोक पर सौ हाथी है । यह उपचार से कहा जाता है। अमुल्यग्रे चन्द्रमाः ।
नियम १४१-- (यस्य भावेन भावलक्षणम् २।४।१०६) एक प्रसिद्ध क्रिया से दूसरी अप्रसिद्ध क्रिया का काल जाना जाये तो पहली क्रिया में सप्तमी विभक्ति होती है । जैसे—स गोषु दुह्यमानासु आगत:-वह गायों के दुहने पर आया ।
नियम १४२-(षष्ठयनादरे २।४।१११) अनादर भाव से किसी की उपेक्षा कर क्रिया करने से अनादर भाव वाले में षष्ठी और सप्तमी विभक्ति होती है । जैसे- रुदति मातरि पुत्रः प्रावाजीत्- रोती हुई माता को छोड पुत्र दीक्षित हो गया। रदत्या: मातुः पुत्रः प्रावाजीत् ।
नियम १४३ --- (स्वामीश्वराधिपतिदायादसाक्षिप्रतिभूप्रसूतैर्वा २।४ ११३) स्वामी, ईकर, अधिपति, दायाद, साक्षि, प्रतिभू, प्रसूत आदि इन शब्दों के योग में पष्ठी और सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे --- गवां गोषु वा स्वामी, ईश्वरः, अधिपतिः, दायादः, साक्षी, प्रतिभूः, प्रसूतो वा ।