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दानपात्र
रजकस्य वस्त्रं ददाति-धोबी को वस्त्र देता है। राज्ञः करं ददाति-राजा को कर देता है।
इनमें वस्तु का देना अवश्य है पर वह श्रद्धा आदि की भावना से नहीं दिया जाता अतः इनकी दानपात्र संज्ञा नहीं है ।
नियम ११४- (रुच्यर्थानां प्रीयमाणः २।४।३३) रुचि अर्थ वाली धातुओं के योग में जिस व्यक्ति को जो पदार्थ रुचता हो (अच्छा लगता हो) उस व्यक्ति में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे—मैत्राय रोचते मोदकः। चैत्राय स्वदते दधि ।
नियम ११५– (क्रुधदुहेासूयार्थानां यं प्रतिकोपः २।४।३७)-क्रुध्; द्रुह, ईर्ष्या और असूया इन अर्थ वाली सभी धातुओं के योग में जिसके प्रति क्रोध, द्रोह, ईष्र्या, असूया आदि की जाये उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे--- चैत्रः मैत्राय द्रुह्यति । तात: मात्रे कुप्यति । रामः तेभ्यः ईय॑ति । बालकः बालकेभ्यः अस्यति ।
नियम ११६– (समर्थार्थनमःस्वस्तिस्वाहास्वधावषड्भिः २।४।६७) समर्थ और उसके अर्थ वाले शब्दों से तथा नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा और वषड् आदि शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे—युवाभ्यामहं समर्थोऽलं क्षमः प्रभुर्वा । नमो जिनेन्द्राय । स्वस्ति पूज्याय । स्वाहा अग्नये । स्वधा पितृभ्यः । वषड् इन्द्राय ।
नियम ११७-(तादर्थं २।४।६४) किसी वस्तु से किसी वस्तु का निर्माण किया जाता हो तो उस निर्मित वस्तु में चतुर्थी विभक्ति होती है यदि उपादानवस्तु का साथ में प्रयोग हो तो। जैसे—स घटाय मृत्तिका आनयति ।
नियम ११८- (श्लाघह नुस्थाशपां जीप्स्यमानः २।४।३४) श्लाघ, ह नु, स्था और शप इन धातुओं के योग में जिसको बताया जाता है उसकी संप्रदान संज्ञा होती है। उससे चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-मैत्राय श्लाघते, मैत्राय ह नुते । मैत्राय शपते । मैत्राय तिष्ठते (स्थेय अर्थ में स्था धातु आत्मने पद होती है भिक्षुशब्दानुशासन-३।३।३३) । यथा- त्वयि मयि वा तिष्ठते विवादः ।
नियम ११६-(धारेरुत्तमर्ण : २।४।३५) धारय् धातु के योग में जो ऋण देने वाला है उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे- चैत्राय शतं धारयति मैत्रः (मैत्र चैत्र का सौ रुपये का ऋणी है)।
नियम १२०- (स्पृहेरीप्सितो वा २।४।३६) स्पृह धातु के योग में चतुर्थी विभक्ति विकल्प से होती है। जैसे-विमला धनाय धनं वा स्पृहयति । राजेशः पुष्पेभ्यः पुष्पाणि वा स्पृहयति । मुनिसंगीत: संगीताय संगीत वा स्पृहयति ।
निमय १२१- (अनुप्रतिभ्यां गृणः २।४।४१) अनु, प्रति उपसर्ग सहित गृणाति धातु के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-- आचार्याय अनु