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पाठ २१ : दानपात्र
शब्दसंग्रह
तूलिका ( पेंसिल) । फलकम् (बोर्ड) । रेखा ( लकीर ) । पुस्तकपीठम् ( टिकटी) । वेष्टनम् ( बस्ता ) । काष्ठपट्टिका ( तख्ती ) । वस्त्रबंधनम् (कपड़े की जिल्द) । पीठम् ( मूढा ) । चतुष्पादिका ( चौकी) । सुखोपवेशिका ( सोफा या आराम कुर्सी) । पुरस्कार : ( इनाम ) । काष्ठपटलम् ( तख्ता) | आसन्दी आसन्दिका (कुर्सी) । लेखनी, कलम : ( कलम ) । कागदः, पत्रम् ( कागज ) । संचिति: ( जमा करना) । काष्ठपीठ: ( डेस्क) । काष्ठासनम् (बेंच ) । पादफलकम् (मेज ) । श्रेणि: ( कक्षा ) । अनुपस्थिति : ( गैरहाजिरी ) । योग: ( जोड) । संकलनम् ( हिसाब की जोड) । व्यवकलनम् ( बाकी ) । निबन्ध - पुस्तक: (रजिस्टर ) | भाग : ( भाग ) । रेखागणितम् ( रेखागणित ) । बीजगणितम् (बीजगणित ) । रोचते ( अच्छा लगता है ) । क्रुध्यति ( क्रोध करता है) । ति ( द्रोह करता है ) । ईर्ष्यति ( ईर्ष्या करता है) । असूयति ( बुराईं निकालता है ) । स्पृहयति ( चाहता है ) । अनुगृणाति ( अनुमोदन करता है) । प्रतिगृणाति ( प्रतिज्ञा करता है ) । श्लाघते ( प्रशंसा करता है ) । हनुते ( छिपाता है ) । कल्पते ( समर्थ होता है ) । संपद्यते ( उत्पन्न होता है ) - आशृणोति, प्रतिशृणोति ( प्रतिज्ञा करता है) ।
धातु - वद - व्यक्तायां वाचि ( वदति) बोलना ।
जगत्, कर्मन् और नामन् शब्दों के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट १ : संख्या ३१,२९,३०)
वद धातु के रूप याद करो (परिशिष्ट २ संख्या ६४ )
दानपात्र
( दानपात्रे चतुर्थी २|४|६३) कर्म के द्वारा अथवा क्रिया के द्वारा श्रद्धा, उपकार या कीर्ति की इच्छा से जिसको कोई वस्तु दी जाये अथवा जिसके लिए कोई कार्य किया जाये उसे 'दानपात्र' कहते हैं । दानपात्र में चतुर्थी विभक्ति होती है । जैसे— श्रमणाय भिक्षां ददाति (श्रमण के लिए भिक्षा देता है ) । यहां श्रमण को श्रद्धा से भिक्षा दी जा रही है इसलिए श्रमण की 'दानपात्र' संज्ञा है ।
कार्यं निवेदयति ( गुरु को कार्य निवेदन करता है) । यहां गुरुः को निवेदन किया जाता है इसलिए गुरु की 'दानपात्र' संज्ञा है । कार्य कर्म है । युद्धाय संनह्यते - यहां वाक्य में कर्म नहीं केवल क्रिया है ।